अंतिम गवाह की परछाई

भैरमपुर कस्बे में हुई रहस्यमयी हत्या के पीछे का सच, जहाँ एकमात्र गवाह की खामोशी सब कुछ बदल देती है। पढ़ें यह भावनाओं और सस्पेंस से भरी कहानी — अंतिम गवाह की परछाई।

बरसात के बाद की ठंडी सुबह थी। उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे भैरमपुर की गलियों में कीचड़ और बारिश का पानी जमा था। आसमान धुँधला था और पुराना डाकघर के सामने असामान्य भीड़ लगी थी।

लोग फुसफुसा रहे थे—
“सुना है, रमेश पांडे को रात में किसी ने मार दिया।”
“अरे, वो तो नेक आदमी थे, किसने दुश्मनी निकाली?”
“घर का ताला टूटा था… चोरी का मामला लगता है।”

रमेश पांडे कस्बे में सरकारी सप्लाई ठेके लेते थे। बीवी का सालों पहले निधन हो चुका था, बेटा अंशुमान दिल्ली में पढ़ रहा था। वह अपने पुराने हवेलीनुमा घर में अकेले रहते थे।

लेकिन पुलिस के लिए सबसे बड़ी बात ये थी कि एक गवाह सब देख चुका था… पर उसने बोलने से मना कर दिया।


भैरमपुर थाने के तेजतर्रार इंस्पेक्टर आदित्य सिंह को केस सौंपा गया। वे सीधे रमेश के घर पहुँचे— पुराने लकड़ी के दरवाजे, दीवारों पर नमी के दाग, और फर्श पर सूखा खून।

इंस्पेक्टर आदित्य सिंह

फॉरेंसिक टीम सबूत जुटा रही थी। उसी समय आदित्य ने बाहर खड़े एक बुज़ुर्ग को देखा— सफेद धोती, झुकी कमर, आँखों में डर।

“नाम?” आदित्य ने पूछा।
“हरिनारायण… लोग हरिया काका कहते हैं।”
पता चला, यही वो गवाह हैं जिन्होंने रात में कुछ देखा था।

“काका, क्या देखा?”
काँपती आवाज़ में काका ने कहा—
“साहब… जो मैंने देखा, अगर बोल दिया… तो मैं भी नहीं बचूँगा।”


पहला सुराग

आदित्य को समझ आ गया कि काका कुछ छुपा रहे हैं। उन्होंने घर की तलाशी ली। एक अलमारी का ताला टूटा था और अंदर से पुराने फाइल्स बिखरे पड़े थे। एक कागज पर लाल स्याही में लिखा था—
“मत खोदो… वरना मिटा दिए जाओगे।”

पास की मेज़ पर रमेश का मोबाइल था। कॉल लॉग में आखिरी नंबर ‘अननोन’ था— रात 11:57 पर।


गाँव की फुसफुसाहट

आदित्य ने इधर-उधर पूछताछ शुरू की। चायवाला बृजनाथ बोला—
“साहब, रमेश बाबू पिछले महीने से परेशान थे। किसी से मिलकर आते थे, फिर देर रात तक जागते थे। कहते थे कि भैरमपुर की ‘पुरानी फैक्ट्री’ में गड़बड़ चल रही है।”

पुरानी फैक्ट्री— ये नाम सुनते ही आदित्य चौंके। वो फैक्ट्री रमेश के दोस्त और MLA नेता शिवकांत मिश्रा की थी, जो सालों से बंद पड़ी थी।


हरिया काका का सच

आदित्य ने उसी शाम काका के घर दस्तक दी। छोटा सा मिट्टी का घर, दीवारों पर टंगे भगवान के पोस्टर, और अंदर अंधेरा।
“काका, सच बताओ… वरना देर हो जाएगी।”

काका ने रोते हुए कहा—
“साहब… मैंने रात को देखा… तीन लोग रमेश बाबू के घर घुसे। एक के हाथ में बंदूक थी, दूसरा कागज खोज रहा था। तीसरा… उसका चेहरा मैंने साफ देखा… वो शिवकांत मिश्रा का आदमी था— गुड्डू पहलवान।”

“फिर तुमने पहले क्यों नहीं बताया?”
“क्योंकि साहब… कल रात मेरे आँगन में चुपचाप एक चाकू गड़ा हुआ मिला… उसमें खून लगा था… ये उनका इशारा था कि चुप रहो।”


फैक्ट्री का राज

आदित्य ने सीधे पुरानी फैक्ट्री की ओर रुख किया। अंदर धूल और जंग लगी मशीनें। लेकिन पिछले हिस्से में ताज़ा ट्रक के टायरों के निशान मिले।

एक कोने में, बोरे के पीछे छुपाकर हथियार और नकली दवाइयाँ रखी हुई थीं। ये अवैध कारोबार था, जिसे रमेश ने शायद पकड़ लिया था।

वहीं एक पुराना CCTV DVR मिला। फुटेज में दिखा— रमेश पांडे एक फाइल लेकर फैक्ट्री में आते हैं, कुछ फोटो खींचते हैं और फिर किसी से फोन पर बहस करते हैं।


आखिरी चाल

आदित्य ने योजना बनाई। उन्होंने मीडिया में लीक कर दिया कि गवाह ने पूरा चेहरा पहचान लिया है और पुलिस जल्द गिरफ्तारी करेगी।

अगली रात, पुलिस ने फैक्ट्री के बाहर निगरानी रखी। ठीक 2 बजे, एक जीप वहाँ पहुँची— उसमें गुड्डू पहलवान और MLA शिवकांत मिश्रा खुद थे। वे सबूत नष्ट करने आए थे।

पुलिस ने उन्हें रंगे हाथ पकड़ लिया। फैक्ट्री से बरामद हथियार, नकली दवाइयाँ, और CCTV फुटेज ने केस पक्का कर दिया।


हरिया काका अब चैन से थे, लेकिन चेहरे पर उदासी थी।
“साहब, रमेश बाबू ने मुझसे कहा था— हरिया, सच कभी मत दबाना, चाहे डर कितना भी हो… मैंने देर कर दी।”

आदित्य ने कंधे पर हाथ रखा—
“काका, देर से ही सही… लेकिन आपने सच बोलकर एक कस्बा बचा लिया। यही असली गवाही है।”

भैरमपुर में अब लोग खुलेआम कहते थे—
“अंतिम गवाह की परछाई कभी मिटती नहीं… वो न्याय तक साथ रहती है।”

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