अंतिम रात का सच

रात करीब 2:30 बजे हो चुकी थी। बाहर हवाएँ और तेज़ हो गई थीं, जैसे कोई अदृश्य ताकत गाँव के हर दरवाज़े को हिला रही हो। राजीव बिस्तर पर लेटे-लेटे करवटें बदल रहा था, लेकिन आँखों में नींद का नामो-निशान नहीं था।
अचानक उसकी नज़र कमरे के कोने में पड़ी—जहाँ पुरानी लकड़ी की अलमारी थी। अलमारी का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ था, और अंदर से हल्की-सी सरसराहट की आवाज़ आ रही थी, जैसे कोई अंदर बैठा हो और धीरे-धीरे कपड़ों को हिला रहा हो।
राजीव का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। उसने धीमे कदमों से अलमारी की ओर बढ़ते हुए दरवाज़ा खोला… लेकिन अंदर सिर्फ़ पुराने कपड़े थे, कोई नहीं। उसने राहत की साँस ली, पर तभी… पीछे से किसी ने उसके कान में फुसफुसाया —
“तुम यहाँ क्यों आए हो?”
राजीव ने पीछे पलटकर देखा — और उसके होश उड़ गए। सामने वही लड़की खड़ी थी, जिसकी तस्वीर उसने दिन में देखी थी। वही फीकी पीली साड़ी, वही भीगी ज़ुल्फ़ें, और आँखों में अजीब-सी उदासी।
उसके होंठ हिल रहे थे, लेकिन आवाज़ नहीं निकल रही थी। फिर धीरे-धीरे उसने अपना हाथ उठाया और खिड़की की ओर इशारा किया। खिड़की खुली हुई थी, और बाहर धुंध में गाँव का पुराना कुआँ नज़र आ रहा था।
राजीव बिना कुछ सोचे, जैसे किसी नशे में, घर से बाहर निकल पड़ा। ठंडी हवा में उसका शरीर काँप रहा था, लेकिन कदम अपने-आप उस कुएँ की ओर बढ़ते जा रहे थे।
कुएँ के पास पहुँचते ही उसने देखा — वहाँ ज़मीन पर किसी के घसीटे जाने के निशान थे, जो सीधे कुएँ की तरफ़ जाते थे। राजीव ने टॉर्च की रोशनी कुएँ के अंदर डाली… और उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
अंदर पानी नहीं था — बल्कि एक हड्डियों का ढेर था। और उन हड्डियों के बीच वही पीली साड़ी पड़ी थी, जो उस लड़की ने पहन रखी थी।
अचानक किसी ने पीछे से राजीव को ज़ोर से धक्का दिया — और वो सीधे कुएँ में गिर गया। गिरते समय उसने देखा, ऊपर कुएँ के किनारे वही लड़की खड़ी थी, लेकिन इस बार उसके चेहरे पर मुस्कान थी… वो मुस्कान नहीं, मौत की हँसी थी।