“आख़िरी कॉल” – भाग 3

रवि की सांसें तेज़ हो रही थीं। वह जानता था कि अगर उसने अभी कुछ नहीं किया, तो सीमा की ज़िंदगी खतरे में पड़ सकती है। उसने तुरंत चिल्लाकर कहा,
“सीमा! भागो!”
लेकिन फ़ोन कट चुका था। दूसरी तरफ सिर्फ़ सन्नाटा था।
रवि ने मोबाइल में लोकेशन ट्रेसिंग शुरू की, और तुरंत कार लेकर निकल पड़ा।
अंधेरे में सफ़र
रात के करीब 1 बज रहे थे। शहर की सड़कें खाली थीं, और हल्की बारिश हो रही थी। स्ट्रीट लाइट्स के नीचे गिरती बूंदें डर का एक अजीब सा माहौल बना रही थीं। रवि का दिमाग तेज़ी से काम कर रहा था—“आखिर ये सब कौन कर रहा है? और क्यों?”
GPS के अनुसार सीमा की लोकेशन शहर के बाहर, पुराने गोदामों के इलाके में थी। वह जगह पिछले 10 साल से बंद पड़ी थी और वहां केवल कबाड़ और परछाइयां थीं।
पुराना गोदाम
जब रवि वहां पहुंचा, तो चारों तरफ सन्नाटा था। बारिश की बूंदें टिन की छत पर गिरकर एक डरावनी लय बना रही थीं। उसने गोदाम का जंग लगा दरवाज़ा खोला।
अंदर अंधेरा था, सिर्फ़ एक कोने में हल्की रोशनी जल रही थी। और उसी रोशनी के नीचे सीमा कुर्सी से बंधी बैठी थी। उसके मुंह पर कपड़ा बंधा था, आंखों में डर साफ़ झलक रहा था।
रवि आगे बढ़ा, तभी पीछे से एक आवाज़ आई—
“बहुत खोज लिया, इंस्पेक्टर। लेकिन खेल यहीं खत्म होता है।”
रवि ने पलटकर देखा—वह रमेश था, सीमा का पुराना बिज़नेस पार्टनर, जो 2 साल पहले कंपनी से निकाल दिया गया था।
सच का खुलासा
रमेश हंस रहा था—
“तुम्हें पता है, इंस्पेक्टर, तुम्हारे केस में सबसे बड़ा खिलाड़ी कौन था? मैं।
सीमा ने मुझे बर्बाद कर दिया, और मैं उसे खत्म करने आया हूं। लेकिन तुमने बीच में आकर सब बिगाड़ दिया।”
रवि ने शांत स्वर में कहा,
“रमेश, जो तुम कर रहे हो, उसका अंजाम तुम्हें पता है।”
रमेश ने बंदूक तानते हुए कहा,
“मुझे फर्क नहीं पड़ता। लेकिन एक राज़ है, जो तुम्हें पता होना चाहिए—तुम्हें यह केस इसलिए मिला क्योंकि तुम्हारा नाम भी उस मौत की लिस्ट में था।”
रवि का चेहरा कठोर हो गया।
“क्या मतलब?”
रमेश—
“वो सभी लोग जिन्हें तुमने अपने पुराने केस में जेल भिजवाया था, मेरे साथ थे। सीमा सिर्फ़ पहला निशाना थी। उसके बाद तुम्हारी बारी थी।”
अंतिम मोड़
तभी, एक तेज़ हवा के झोंके से गोदाम का दरवाज़ा जोर से बंद हो गया। रमेश का ध्यान एक पल के लिए भटका, और रवि ने मौका पाकर उस पर झपट्टा मारा। दोनों के बीच जोरदार हाथापाई हुई।
अचानक, रमेश का पैर फिसला और वह लोहे की छड़ से टकराकर गिर पड़ा। उसके हाथ में पकड़ी बंदूक दूर जा गिरी। रवि ने उसे काबू में किया, लेकिन रमेश बुरी तरह घायल हो चुका था।
रमेश ने आखिरी सांस लेते हुए कहा—
“तुम सोचते हो, खेल खत्म हो गया… लेकिन ‘आख़िरी कॉल’ अभी बाकी है…”
और उसकी आंखें हमेशा के लिए बंद हो गईं।
चौंकाने वाला अंत
रवि ने सीमा को बांध से मुक्त किया और पुलिस बैकअप को बुलाया। सब कुछ खत्म हो चुका था… या रवि ऐसा सोच रहा था।
जब वह घर लौटा, उसके फोन की स्क्रीन फिर से चमकी।
“नंबर: प्राइवेट कॉल”
उसने कॉल रिसीव किया—
“इंस्पेक्टर… रमेश तो बस प्यादा था। असली खिलाड़ी अभी ज़िंदा है। अगला नाम… तुम्हारा।”
कॉल कट गई।
रवि के हाथ से फोन लगभग गिर गया। बाहर हल्की बारिश अब तूफ़ान में बदल रही थी।
और वह जानता था—यह खेल अभी शुरू हुआ है।