आखिरी गवाह की चुप्पी

आज की कहानी है “आखिरी गवाह की चुप्पी” शाम का वक़्त था। दिल्ली के करोल बाग की तंग गलियों में अंधेरा धीरे-धीरे उतर रहा था। हल्की-हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। इंस्पेक्टर अर्जुन मेहरा अपनी जीप के बोनट पर झुककर सिगरेट सुलगा रहे थे, तभी वायरलेस पर एक मैसेज आया –

“करोल बाग, हाउस नंबर 48… सुसाइड केस।”

अर्जुन ने सिगरेट बुझाई और जीप स्टार्ट कर दी। बारिश अब तेज़ हो चुकी थी। हाउस नंबर 48 एक पुराना, लेकिन साफ-सुथरा मकान था। भीड़ लगी थी, पुलिस बैरिकेड खड़ी थी। अंदर एक कमरे में एक 26-27 साल की लड़की का शव पंखे से लटक रहा था। चेहरे पर डर और दर्द की एक अजीब मिलावट थी।

उसका नाम था — रिया मल्होत्रा

टेबल पर एक अधूरी चिट्ठी थी:
“मैं अब और नहीं सह सकती…

बस, इतना ही। बाकी चिट्ठी फटी हुई थी।

अर्जुन ने नोट किया कि कमरे में किसी जबरन घुसने के निशान नहीं थे, लेकिन खिड़की के पास गिरे हुए कांच के छोटे-छोटे टुकड़े थे। उसने सोचा — “अगर ये सुसाइड है, तो ये कांच बाहर से क्यों टूटा?”

रिया के पड़ोसियों से पूछताछ करने पर पता चला कि उसके घर रात में अक्सर किसी के आने-जाने की आवाज़ आती थी। लेकिन कोई चेहरा किसी ने साफ़ नहीं देखा।

अर्जुन के लिए ये केस आसान नहीं था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने केस को और उलझा दिया — रिया के शरीर पर पुराने चोटों के निशान थे, और मौत से कुछ घंटे पहले उसके खून में एक तेज़ नर्व सिडेटिव मिला था।

इस केस में एक “आखिरी गवाह” था — पड़ोस की 9 साल की बच्ची, सिया। सिया ने रात में खिड़की से कुछ देखा था। लेकिन पूछने पर वो चुप हो जाती, डर के मारे उसकी आंखें भर आतीं।

अर्जुन को लगा कि शायद वही इस केस की कुंजी है।


तीन दिन बाद…

सिया को धीरे-धीरे विश्वास में लेकर अर्जुन ने पूछा —
“सिया, तुमने उस रात क्या देखा?”

सिया कांपते हुए बोली —

“एक अंकल आए थे… उनके हाथ में काला बैग था… उन्होंने रिया दीदी को कुछ पिलाया… फिर… वो रोने लगीं… और अंकल ने…

सिया का गला भर आया।
अर्जुन ने पूछा — “तुम उस अंकल को पहचान सकती हो?”

सिया ने सिर हिलाया, “हाँ… वो अंकल रिया दीदी के… पापा थे।”

अर्जुन का दिल जैसे थम गया।


रिया के पिता — विनय मल्होत्रा — एक जाने-माने बिज़नेस मैन थे। केस का रुख अब बहुत खतरनाक मोड़ ले चुका था। अगर ये सच था, तो ये सिर्फ मर्डर नहीं, एक गहरी पारिवारिक ट्रेजेडी भी थी।

अर्जुन ने विनय को गिरफ्तार करने की कोशिश की, लेकिन सबूत कमज़ोर थे। कोर्ट में टिकने के लिए पुख्ता गवाह और सबूत चाहिए थे।

सिया अब डर के साये में जी रही थी। उसकी मां ने कई बार उसे दूसरे शहर भेजने की कोशिश की, लेकिन अर्जुन जानता था कि आखिरी गवाह की चुप्पी अगर टूट गई, तो केस सॉल्व हो सकता है।


दो हफ्ते बाद

सिया अचानक गायब हो गई।
पूरी दिल्ली में तलाश हुई, लेकिन कोई सुराग नहीं।

अर्जुन का शक सही निकला — सिया को चुप कराने के लिए उठा लिया गया था।

एक पुरानी फैक्ट्री में छापेमारी के दौरान, अर्जुन ने सिया को बेहोश हालत में पाया। और वहीं, एक लोहे की अलमारी में, उसे रिया की पूरी लिखी हुई चिट्ठी भी मिली —

“पापा… आप मुझे मजबूर क्यों कर रहे हैं? मैं आपका राज़ सबको बता दूँगी…”

चिट्ठी में राज़ का ज़िक्र था — विनय मल्होत्रा एक बड़े मनी लॉन्ड्रिंग और ट्रैफिकिंग रैकेट में शामिल थे, और रिया उन्हें एक्सपोज़ करने वाली थी।


अर्जुन ने केस कोर्ट में पेश किया।


लेकिन, ट्रायल से एक दिन पहले… विनय मल्होत्रा अपनी कोठरी में मृत पाए गए। पुलिस ने कहा — हार्ट अटैक

अर्जुन जानता था — ये एक और साजिश थी, ताकि असली मास्टरमाइंड सामने न आए।

केस बंद कर दिया गया।
सिया और उसकी मां शहर छोड़कर चली गईं।

अर्जुन की मेज़ पर आज भी वो चिट्ठी रखी है… और हर बार उसे पढ़ते हुए उसकी आंखें भर आती हैं।

क्योंकि सच्चाई ये है — आखिरी गवाह की चुप्पी आज भी टूटी नहीं है…

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