“आखिरी सुराग की तलाश”

आखिरी सुराग की तलाश कहानी में आपका स्वागत है। उम्मीद आपको यह कहानी जरूर पसंद आएगी।

शाम के 6 बज चुके थे। लखनऊ की सर्द हवाओं में पुरानी गलियों की सूनसान आवाज़ें और भी खामोश लग रही थीं। इंस्पेक्टर राघव सिंह अपनी पुरानी जीप से उतरते हुए थाने के बाहर खड़े चाय वाले से बोले –
“रामू, आज फिर ठंडी बढ़ गई है।”

रामू ने मुस्कुराते हुए चाय का प्याला थमाया, लेकिन उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं।
“साहब, मोहल्ले में फिर से अजीब बातें हो रही हैं… कल रात शर्मा जी की हवेली में से चीखें आई थीं।”

राघव ने भौंहें चढ़ाईं। शर्मा हवेली, यानी वो जगह जहां पिछले तीन साल से कोई नहीं रहता था। मकान मालिक, विनोद शर्मा, अपनी पत्नी के साथ लंदन चला गया था, लेकिन उनकी बेटी सिया यहीं रह रही थी—और पिछले महीने से वो भी गायब थी।


पहला सुराग

राघव तुरंत अपनी टीम लेकर हवेली पहुँचे। भारी लकड़ी का दरवाज़ा आधा खुला था। अंदर अंधेरा और सीलन की गंध। टॉर्च की रोशनी में पुराने पेंटिंग्स और टूटी-फूटी चीज़ें नजर आ रही थीं।
हॉल के बीच में एक पुराना लकड़ी का बॉक्स पड़ा था, जिसके ऊपर ताला टूटा हुआ था। अंदर से बस एक चीज मिली—एक पुराना खत, जिस पर सिया के आंसुओं के निशान थे।

खत में लिखा था:
“जब सच सामने आएगा, तो मैं यहाँ नहीं रहूँगी…”

राघव ने खत को जेब में रखा, लेकिन उनकी नजर नीचे गिरी एक टूटी हुई चांदी की बाली पर पड़ी। बाली का डिज़ाइन अजीब था—उस पर एक छोटे साँप की आकृति बनी थी।


पुरानी दोस्त

अगले दिन राघव, सिया की सबसे करीबी दोस्त रितु से मिले।
रितु ने पहले तो कुछ नहीं कहा, लेकिन जब राघव ने बाली दिखायी, तो उसका चेहरा पीला पड़ गया।
“ये… ये बाली सिया की है, लेकिन वो हमेशा कहती थी कि ये उसे उसकी माँ ने दी थी, और माँ ने कहा था कि इसे कभी मत खोना…”

राघव को लगा, ये बाली सिर्फ एक गहना नहीं, बल्कि एक आखिरी सुराग की तलाश का रास्ता हो सकता है।


हवेली का तहखाना

तीसरे दिन, राघव फिर हवेली पहुँचे, लेकिन इस बार वो अकेले थे। उन्होंने पूरे घर की तलाशी ली, और आखिर में एक पुराने अलमारी के पीछे छिपा दरवाज़ा मिला।
दरवाज़ा खोलते ही सीढ़ियाँ नीचे जाती थीं। तहखाने में अंधेरा और एक अजीब सी बदबू थी।
दीवार पर पुराने अख़बार चिपके थे—सारे एक ही खबर के—”विनोद शर्मा पर तस्करी के आरोप”।

एक कोने में लकड़ी की कुर्सी पर बंधी सिया बैठी थी, बेहोश।


सच का खुलासा

सिया को होश आने पर उसने रोते हुए बताया—
“पापा तस्करी करते थे, और ये बाली उनके एक गिरोह के नेता की निशानी थी। जब मैंने पापा के पुराने कागज़ देखे, तो उन्होंने मुझे यहाँ बंद कर दिया, ताकि मैं सच पुलिस को न बता सकूँ। कल रात किसी ने मुझे बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन तभी गिरोह के लोग लौट आए…”

राघव ने गिरोह को पकड़ने के लिए फौरन प्लान बनाया। दो दिन के भीतर पूरी टीम ने हवेली को घेर लिया और आधी रात को छापा मारकर गिरोह के सभी लोग गिरफ्तार हो गए।


आखिरी मोड़

केस खत्म हो चुका था, लेकिन राघव के मन में एक सवाल रह गया—कल रात सिया को बाहर निकालने की कोशिश किसने की थी?
जब उन्होंने CCTV फुटेज देखी, तो चौंक गए—वो सिया की माँ थी, जो लंदन में होने का नाटक कर रही थी।
असल में, वो अपने पति के धंधे से पहले ही अलग हो चुकी थी, और बेटी को बचाने के लिए चुपचाप भारत लौट आई थी।

राघव ने रिपोर्ट में ये नहीं लिखा—क्योंकि कभी-कभी सच को छुपाना भी एक इंसाफ होता है।

आपको हमारी यह कहानी कैसी लगी कमेंट करके अपना फीडबैक जरूर दे और कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *