चौथी कोशिश का संकल्प

भाग 11 में सपना अपनी चौथी कोशिश की तैयारी शुरू करती है।
इस बार वह केवल पढ़ाई ही नहीं, बल्कि मानसिक संतुलन और आत्मविश्वास पर भी ध्यान देती है।
गुरु की सीख और अपने पुराने अनुभवों से वह और मजबूत हो जाती है।
यहीं से कहानी फिर एक नयी उम्मीद की ओर बढ़ती है।
नई सुबह की शुरुआत
सर्दियों की हल्की सुबह थी।
दिल्ली की ठंडी हवा में सपना ने अपने कमरे की खिड़की खोली और गहरी सांस ली।
उसके चेहरे पर अब पहले जैसी थकान नहीं, बल्कि आत्मविश्वास की चमक थी।
उसने खुद से कहा—
“अब चाहे जो हो जाए, इस बार रुकना नहीं है।
जिंदगी का मंत्र एक ही है—कभी हार मत मानो।”
गुरु का मार्गदर्शन
अशोक सर रोज़ उसे गाइड करते थे।
एक दिन उन्होंने कहा—
“सपना, पढ़ाई ही सब कुछ नहीं है।
तू अपनी सेहत, मानसिक शांति और सकारात्मकता पर भी ध्यान दे।
तभी तू परीक्षा में पूरे आत्मविश्वास से बैठ पाएगी।”
इस बार सपना ने टाइम-टेबल में मेडिटेशन और एक्सरसाइज़ भी शामिल की।
वह रोज़ सुबह उठकर योग करती, फिर पढ़ाई शुरू करती।
धीरे-धीरे उसका मन एकदम शांत होने लगा।
रश्मि का साथ
रश्मि हमेशा उसके साथ खड़ी रही।
जब सपना थक जाती, तो रश्मि चाय बनाकर लाती।
कभी-कभी दोनों मजाक भी करतीं ताकि माहौल हल्का रहे।
रश्मि ने कहा—
“सपना, इस बार तू बिल्कुल अलग दिख रही है।
तेरे चेहरे से लग रहा है कि तू इस बार ज़रूर सफल होगी।”
सपना मुस्कुराई और बोली—
“हाँ रश्मि, क्योंकि अब मैं समझ गई हूँ कि चाहे कितनी भी असफलता मिले, कभी हार मत मानो ही सफलता का रास्ता है।”
मॉक टेस्ट और आत्मविश्वास
इस बार सपना ने हर रविवार मॉक टेस्ट दिया।
पहले कुछ टेस्ट में अंक ठीक-ठाक आए, लेकिन धीरे-धीरे उसके अंक बढ़ने लगे।
अशोक सर ने उसकी कॉपियाँ देखकर कहा—
“गुड, अब तू सही दिशा में जा रही है।
अगर इसी तरह मेहनत करती रही, तो सफलता पक्की है।”
ये सुनकर सपना के अंदर एक नया आत्मविश्वास पैदा हुआ।
उसे लगा जैसे अब वह सचमुच इस मंज़िल के करीब पहुँच रही है।
प्रीलिम्स की परीक्षा का दिन नज़दीक था।
सपना ने किताबें समेटीं और भगवान की तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर कहा—
“हे भगवान, मुझे बस हिम्मत देना।
मैं जानती हूँ कि मंत्र सिर्फ एक है—कभी हार मत मानो।”
उसकी आँखों में डर नहीं, बल्कि उम्मीद थी।
वह अब तैयार थी—अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी परीक्षा के लिए।
दरवाज़े पर खड़ी उम्मीद
प्रीलिम्स की परीक्षा का परिणाम आया।
सपना ने कंप्यूटर स्क्रीन पर रोल नंबर चेक किया तो उसका दिल तेजी से धड़कने लगा।
और फिर—उसकी आँखों में चमक आ गई।
“पास हो गई!”
उसने खुशी से रश्मि को गले लगा लिया।
रश्मि भी खुशी से झूम उठी—
“मैंने कहा था ना, इस बार तू जरूर पास होगी।”
मेन्स की तैयारी और संघर्ष
अब असली लड़ाई शुरू हुई—मेन्स की।
हर दिन सुबह से रात तक नोट्स, आंसर राइटिंग और करेंट अफेयर्स।
सपना ने अपना पूरा समय और ऊर्जा इसमें लगा दी।
अशोक सर रोज़ उसे गाइड करते—
“उत्तर छोटा मत छोड़ना, हर पॉइंट को जोड़कर लिखना।
और ध्यान रहे, समय का प्रबंधन सबसे अहम है।”
सपना ने हर गलती को सुधारते हुए अपनी तैयारी मजबूत की।
इस दौरान उसने खुद से कहा—
“इस बार चाहे जैसा भी हो, मैं रुकूँगी नहीं।
जिंदगी का मंत्र है—कभी हार मत मानो।”
मेन्स परीक्षा का दिन
परीक्षा हॉल में जब वह बैठी, तो उसके चेहरे पर आत्मविश्वास साफ दिख रहा था।
पेन पकड़ते ही उसने महसूस किया कि अब वह तैयार है।
हर प्रश्न के उत्तर उसने ध्यान से लिखे।
परीक्षा खत्म होने पर उसकी आँखों में चमक थी।
बाहर निकलते ही रश्मि ने पूछा—
“कैसा हुआ पेपर?”
सपना ने मुस्कुराकर कहा—
“बहुत अच्छा। इस बार लगता है, मैं जीत के करीब हूँ।”
नतीजा और उम्मीद
कुछ महीनों बाद परिणाम आया।
सपना ने सांस रोककर स्क्रीन पर देखा—
और इस बार भी उसके रोल नंबर पर एक गोल दायरा बन गया।
“हाँ! मैं पास हो गई हूँ!”
उसने खुशी से चीखते हुए कहा।
अब उसके सामने था—इंटरव्यू।
नया मोड़
लेकिन ठीक उसी समय ज़िंदगी ने एक और करवट ली।
परीक्षा के एक हफ्ते पहले घर से फोन आया।
उसके पिता अचानक बीमार हो गए थे।
गाँव की हालत खराब थी, पैसे की कमी भी थी।
फोन पर माँ की आवाज़ काँप रही थी—
“बेटी, अब तेरे पापा की हालत ठीक नहीं लगती।
तू जल्दी गाँव आ जा।”
सपना के पैरों तले जमीन खिसक गई।
वह कुछ देर तक फोन पकड़े खामोश बैठी रही।
उसकी आँखों में आँसू थे।
उसने सोचा—“क्या करूँ? इंटरव्यू छोड़ दूँ या गाँव जाऊँ?”
मन के अंदर से आवाज़ आई—
“याद रख, सपना। कभी हार मत मानो। यही तेरे पापा की भी ख्वाहिश है।”
सपना ने आँसू पोंछे और खुद से वादा किया—
“मैं इंटरव्यू भी दूँगी और पापा को भी नहीं छोड़ूँगी।
अब चाहे हालात कैसे भी हों, रुकना नहीं है।”
उसकी आँखों में आग थी।
उसने डायरी खोली और लिखा—
“जिंदगी बार-बार गिराती है, लेकिन सिखाती भी है।
और सच्चा योद्धा वही है, जो गिरकर भी कहे—कभी हार मत मानो।”
संघर्ष का सबसे कठिन मोड़
दिल्ली की रात ठंडी थी, लेकिन सपना के दिल में तूफान मचा हुआ था।
वह किताबों के सामने बैठी थी, पर पन्ने पलटने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
फोन पर माँ की आवाज़ गूँज रही थी—
“बेटी, तेरे पापा अस्पताल में हैं। पैसे की ज़रूरत है।”
सपना की आँखें भर आईं।
दिल्ली में उसका खर्च पहले ही किसी तरह से चल रहा था।
अब घर की दवा-इलाज का खर्च?
पैसे का इंतज़ाम
रश्मि ने उसकी हालत देखी और बोली—
“सपना, तू परेशान मत हो। जो मेरे पास है, मैं दूँगी।”
अशोक सर ने भी मदद का हाथ बढ़ाया—
“बेटा, तू चिंता मत कर।
तेरे पापा की ज़रूरत पहले है।
लेकिन एक बात याद रख—कभी हार मत मानो।”
सपना ने अपने आँसू पोंछे और ठान लिया कि वह किसी तरह यह संकट भी पार करेगी।
गाँव लौटना
इंटरव्यू से सिर्फ पाँच दिन पहले सपना गाँव पहुँची।
पिता अस्पताल के बेड पर थे।
कमज़ोर शरीर, लेकिन आँखों में वही चमक थी।
पिता ने हाथ पकड़कर कहा—
“बेटी, तेरी मेहनत बेकार नहीं जानी चाहिए।
हम चाहते हैं कि तू IAS बने।
याद रख, कभी हार मत मानो।”
सपना रो पड़ी।
उसके दिल में एक साथ दर्द और हिम्मत दोनों उमड़ पड़े।
जिम्मेदारियों का बोझ
गाँव में छोटी बहन की पढ़ाई, माँ की देखभाल, और पिता का इलाज।
सबका बोझ अब सपना के कंधों पर था।
रिश्तेदार कह रहे थे—
“अरे, IAS की तैयारी छोड़ अब। पहले घर संभाल।”
लेकिन सपना ने मन ही मन कहा—
“नहीं, मैं अपने सपनों को यहीं खत्म नहीं होने दूँगी।
जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी आगे बढ़ूँगी।
कभी हार मत मानो—यही मेरा रास्ता है।”
दिल्ली वापसी
दो दिन गाँव में रहकर, पिता का इलाज सुनिश्चित करके, सपना वापस दिल्ली लौटी।
इस बार उसकी आँखों में आँसू नहीं थे, बल्कि दृढ़ संकल्प था।
उसने खुद से कहा—
“मेरे पापा का सपना अधूरा नहीं रह सकता।
इस बार मैं सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि अपने पूरे परिवार के लिए लड़ूँगी।”
इंटरव्यू से एक रात पहले सपना अपनी किताबों के बीच बैठी थी।
उसने पिता की तस्वीर सामने रखी और हाथ जोड़कर बोली—
“आपने हमेशा कहा कि कभी हार मत मानो।
कल जब मैं इंटरव्यू देने जाऊँगी, तो यही मंत्र मेरे साथ होगा।”
उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन दिल में आत्मविश्वास की लौ जल रही थी।
यह वही लौ थी, जो हर संकट में उसे आगे बढ़ाती रही थी।
निर्णायक दिन
सुबह दिल्ली की हवा में ठंडक थी।
सपना ने अलार्म बंद किया और धीरे-धीरे उठी।
आज का दिन उसके जीवन का सबसे अहम दिन था—IAS इंटरव्यू।
उसने पिता की तस्वीर सामने रखकर प्रणाम किया और धीरे से कहा—
“पापा, आज आपके सपने को पूरा करने का पहला कदम है।
आपने हमेशा कहा—कभी हार मत मानो।
आज मैं यही मंत्र लेकर निकल रही हूँ।”
इंटरव्यू की तैयारी
पिछले कुछ दिनों से सपना ने हर सवाल का अभ्यास किया था।
अशोक सर ने उसे बार-बार कहा था—
“इंटरव्यू में सिर्फ ज्ञान नहीं, आत्मविश्वास भी चाहिए।
याद रखना, कभी हार मत मानो—ये भाव तुम्हारी आँखों में दिखना चाहिए।”
रश्मि ने उसकी ड्रेस प्रेस कर दी।
सपना ने हल्की साड़ी पहनी और खुद को शीशे में देखा।
चेहरे पर घबराहट थी, लेकिन आँखों में दृढ़ संकल्प।
इंटरव्यू हॉल में प्रवेश
दिल्ली के UPSC भवन के बाहर खड़े होकर उसने गहरी सांस ली।
वह अंदर पहुँची और प्रतीक्षा कक्ष में बैठ गई।
चारों तरफ युवा उम्मीदवार थे, सब तनाव में।
सपना ने आँखें बंद कीं और मन ही मन दोहराया—
“कभी हार मत मानो, कभी हार मत मानो, कभी हार मत मानो…”
इससे उसे अजीब-सी शक्ति मिली।
सवाल-जवाब की बौछार
जब उसका नाम पुकारा गया, वह कमरे में दाखिल हुई।
पाँच अनुभवी अफसर उसकी ओर देख रहे थे।
पहला सवाल आया—
“सपना, अगर आपको अपने गाँव की गरीबी दूर करनी हो तो सबसे पहले क्या कदम उठाएँगी?”
सपना ने बिना हिचके उत्तर दिया—
“सर, मैं शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था पर काम करूँगी।
क्योंकि जब तक गाँव पढ़ा-लिखा और स्वस्थ नहीं होगा, विकास संभव नहीं।”
दूसरे अफसर ने पूछा—
“आपने इतनी असफलताओं के बाद भी तैयारी क्यों जारी रखी?”
सपना मुस्कुराई और बोली—
“सर, मेरे पिता हमेशा कहते थे—कभी हार मत मानो।
जिंदगी चाहे कितनी बार गिराए, अगर इंसान उठ खड़ा हो, तो एक दिन जीत जरूर मिलती है।”
मन की लड़ाई
हर सवाल के साथ सपना का आत्मविश्वास बढ़ रहा था।
लेकिन उसके दिल में कहीं पिता की बीमारी की चिंता भी थी।
वह चाहकर भी इस बात को भुला नहीं पा रही थी।
फिर भी उसने ठान लिया था कि आज किसी भी हालत में खुद को कमजोर नहीं पड़ने देगी।
उसे लग रहा था जैसे पिता की आवाज़ भीतर से गूँज रही हो—
“बेटी, कभी हार मत मानो।”
इंटरव्यू खत्म हुआ।
सपना कमरे से बाहर आई।
उसका दिल धड़क रहा था, लेकिन चेहरे पर एक अनोखी शांति थी।
रश्मि बाहर इंतज़ार कर रही थी।
सपना ने उसकी आँखों में देखकर कहा—
“मैंने पूरी कोशिश की है।
अब परिणाम जो भी हो, मैं जानती हूँ कि मैंने मंत्र नहीं छोड़ा—कभी हार मत मानो।”
उसकी आँखों से आँसू बह निकले, लेकिन इस बार वे आँसू हार के नहीं, बल्कि आत्मसंतोष के थे।
वह दिन जिसकी प्रतीक्षा थी
गर्मी की तपती दोपहर थी।
दिल्ली की गलियों में लू चल रही थी, लेकिन सपना का दिल उससे भी ज्यादा तेज़ धड़क रहा था।
आज IAS के परिणाम आने वाले थे।
सपना ने लैपटॉप खोला।
उंगलियाँ काँप रही थीं।
रश्मि और अशोक सर उसके साथ खड़े थे।
फोन पर माँ की आवाज़ आई—
“बेटी, रिज़ल्ट कब आएगा?”
सपना ने धीरे से कहा—
“बस माँ, कुछ ही पलों में…”
परिणाम का खुलासा
वेबसाइट खुली।
सैकड़ों नाम स्क्रॉल हो रहे थे।
सपना की आँखें स्क्रीन पर दौड़ रही थीं।
दिल इतनी तेज़ धड़क रहा था कि जैसे सीने से बाहर आ जाएगा।
और तभी—
उसकी नजर अपने नाम पर पड़ी—
“Sapanа Devi – AIR 47”
कुछ पल के लिए उसे विश्वास ही नहीं हुआ।
उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
उसने चिल्लाकर कहा—
“रश्मि… मेरा नाम है! मैं IAS बन गई…!”
खुशी का सैलाब
रश्मि ने उसे गले लगा लिया।
अशोक सर की आँखों से भी आँसू झलक आए।
उन्होंने कहा—
“देखा बेटा, मैंने कहा था न—कभी हार मत मानो।
तेरे अंदर वो जिद थी जो किसी को भी मंज़िल तक पहुँचा सकती है।”
फोन पर माँ रो रही थीं।
“बेटी, तेरे पापा को बता देती हूँ।
उनका सपना पूरा हो गया।”
गाँव की ख़ुशी
कुछ दिनों बाद सपना अपने गाँव लौटी।
पूरा गाँव घर के बाहर जमा था।
लोग ढोल-नगाड़े बजा रहे थे।
बच्चियाँ फूल बरसा रही थीं।
पिता अब पहले से कमजोर थे, लेकिन चेहरे पर गर्व की मुस्कान थी।
उन्होंने सपना का हाथ पकड़कर कहा—
“बेटी, आज तूने हमें ही नहीं, बल्कि पूरे गाँव को रोशनी दी है।
याद रख, कभी हार मत मानो—यही तेरी असली ताक़त है।”
सपना की आँखें भर आईं।
यह जीत केवल उसकी नहीं थी, बल्कि हर उस इंसान की थी जिसने संघर्षों के बावजूद अपने सपनों को जिंदा रखा।
सपना अब IAS अधिकारी बन चुकी थी।
दिल्ली के लाल किले की छाया में खड़ी होकर उसने आसमान की ओर देखा और मन ही मन कहा—
“पापा, आपकी सीख मेरी सबसे बड़ी दौलत है।
मैं जानती हूँ कि जिंदगी में चाहे कितनी बार हार मिले, असली सफलता उन्हीं को मिलती है जो कभी हार मत मानो।”
उसकी आँखों में नमी थी, लेकिन मुस्कान पहले से कहीं गहरी।
यह एक नई सुबह की शुरुआत थी।
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