गुमशुदा स्टेशन का रहस्य

भारत में रेलवे सिर्फ़ सफ़र का ज़रिया नहीं, बल्कि करोड़ों कहानियों का हिस्सा है। ट्रेनें आती-जाती हैं, लोग सफ़र करते हैं और अपने गंतव्य तक पहुँच जाते हैं। मगर कभी-कभी यही रेलवे हमें ऐसी घटनाओं से रूबरू कराती है, जिनका जवाब विज्ञान या तर्क के पास भी नहीं होता।

ऐसी ही एक सच्ची घटना है मल्हौर स्टेशन का रहस्य।

मल्हौर स्टेशन – डर और रहस्य का दूसरा नाम

उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले के पास स्थित मल्हौर स्टेशन बाहर से देखने पर बेहद साधारण लगता है। टूटी हुई बेंचें, जंग खाए बोर्ड, और मुश्किल से जलती टिमटिमाती बल्ब की रोशनी। दिन में तो यहाँ कुछ लोकल ट्रेनें रुक जाती हैं, लेकिन रात होते ही प्लेटफार्म सुनसान हो जाता है।

गाँव के लोग कहते हैं कि —👉 “रात 12 बजे के बाद इस स्टेशन के पास मत जाना। यहाँ अजीब सी सीटी बजती है, जबकि कोई ट्रेन नहीं होती।”

पहली घटना – 2002 की ठंडी रात

14 नवम्बर 2002 की रात, लखनऊ से वाराणसी जाने वाली एक पैसेंजर ट्रेन मल्हौर स्टेशन से गुज़र रही थी।

उस ट्रेन में बैठे कुछ कॉलेज के छात्र बताते हैं —“हम खिड़की से बाहर देख रहे थे। अचानक हमें सामने प्लेटफार्म पर दूसरी ट्रेन खड़ी दिखाई दी। उसके डिब्बों की खिड़कियों से पीली-पीली रोशनी झलक रही थी, जैसे यात्री बैठे हों। हमने सोचा कि यह शायद कोई मालगाड़ी है।”

लेकिन जैसे ही उनकी ट्रेन वहाँ रुकी, बाहर उतरने पर देखा — पूरा प्लेटफार्म खाली था।कोई दूसरी ट्रेन वहाँ नहीं थी।

स्टेशन मास्टर की गवाही

उस रात ड्यूटी पर मौजूद स्टेशन मास्टर रामपाल सिंह ने बाद में बयान दिया —“मैंने खुद अपने केबिन से देखा था। मुझे साफ लगा कि सामने दूसरी ट्रेन खड़ी है। मैं बाहर आया तो वहाँ कुछ नहीं था। और अजीब बात ये थी कि उस वक़्त कोई शेड्यूल ट्रेन थी ही नहीं।”

उनकी यह गवाही बाद में अखबारों में छपी और लोगों का डर और बढ़ गया।

गाँववालों की मान्यता

मल्हौर के बुजुर्ग बताते हैं कि 1940 के दशक में यहाँ एक भयानक ट्रेन हादसा हुआ था। उस वक़्त एक पूरी बोगी में आग लग गई थी और दर्जनों लोग ज़िंदा जल गए थे।

लोग कहते हैं कि वही यात्री अब भी अपनी “भूतिया ट्रेन” लेकर प्लेटफार्म पर आते हैं।कुछ ग्रामीणों का दावा है कि वे रात को प्लेटफार्म से आवाज़ें सुनते हैं —

👉 बच्चों के रोने की

👉 औरतों के चिल्लाने की

👉 या बोगी से सामान घसीटने कीअखबारों की सुर्ख़ियाँ

अखबारों की सुर्ख़ियाँ

2003 में दैनिक जागरण और अमर उजाला ने इस घटना पर बड़ी रिपोर्ट छापी।

हेडलाइन थी —

“मल्हौर स्टेशन पर दिखती है रहस्यमयी ट्रेन – यात्रियों में दहशत”

रिपोर्ट में लिखा था कि अब तक 50 से ज़्यादा लोग इस घटना की पुष्टि कर चुके हैं, लेकिन रेलवे के पास इसका कोई जवाब नहीं है।—

रेलवे की जाँच और असफलता

2004 में रेलवे मंत्रालय ने एक टीम भेजी। इंजीनियरों ने ट्रैक, सिग्नल और सर्किट सब चेक किया। सब कुछ सामान्य था।टीम ने रिपोर्ट दी —

👉 “यह महज़ यात्रियों की कल्पना है। कोई भूतिया ट्रेन नहीं है।”

लेकिन जाँच टीम के कुछ लोग अनौपचारिक तौर पर मानते थे कि वहाँ अजीब सी ठंडक और हवा में अजीब गंध महसूस हुई थी।—

युवाओं की कोशिश और कैमरे की विफलता

2010 के बाद कई युवाओं ने मोबाइल से वीडियो बनाने की कोशिश की।एक बार कुछ छात्रों ने आधी रात को प्लेटफार्म पर रिकॉर्डिंग शुरू की। उन्होंने दावा किया कि कैमरे में रोशनी की पट्टी दिखी, जैसे ट्रेन की हेडलाइट पास से गुज़री हो।

लेकिन जैसे ही उन्होंने वीडियो देखा, वह धुंधला था और बीच से खुद-ब-खुद बंद हो गया था।—

आज तक का रहस्यआज भी मल्हौर स्टेशन सुनसान पड़ा है। रात को वहाँ से गुज़रने वाले यात्री कहते हैं कि ट्रेन की स्पीड अपने आप धीमी हो जाती है।

👉 क्या वाकई वहाँ एक “भूतिया ट्रेन” आती है?

👉 या यह सिर्फ़ दिमाग का खेल है?

👉 या फिर 1940 की उस दुर्घटना की energy अब भी वहीं अटकी हुई है?

सवाल अब भी अनसुलझा है।

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