मौत का सौदा

राजीव कुएँ के अंदर गिर तो गया, लेकिन सौभाग्य से नीचे हड्डियों के बीच कुछ कपड़े और पुराना घास था, जिससे उसकी हड्डियाँ टूटने से बच गईं। अंधेरा इतना घना था कि हाथ आगे बढ़ाने पर भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
वो जैसे-तैसे उठकर बाहर निकलने का रास्ता ढूँढने लगा, तभी ऊपर से लड़की की आवाज़ आई —
“तुम सच जानना चाहते थे न? लो, देख लो… यही मेरा सच है!”
अचानक कुएँ की दीवार पर हल्की-सी रोशनी चमकी, और जैसे किसी ने अदृश्य पर्दा हटा दिया हो, उसके सामने एक दृश्य बनने लगा।
उस दृश्य में वही लड़की थी — जिंदा। गाँव के कुछ लोग उसे बाँधकर उसी कुएँ के पास ला रहे थे। उसके चेहरे पर डर था, और वो चिल्ला रही थी,
“मैंने कुछ नहीं किया! मुझे छोड़ दो!”
लेकिन भीड़ चिल्ला रही थी — “ये चुड़ैल है! इसकी वजह से हमारे खेत बर्बाद हुए, बच्चों की तबीयत खराब हुई!”
गाँव के प्रधान ने आदेश दिया, और बिना कोई सुनवाई किए, उन्होंने उसे कुएँ में फेंक दिया। वो चीखती रही, लेकिन किसी ने बचाया नहीं।
राजीव की आँखों में आँसू आ गए। अब उसे समझ आया — ये लड़की भूत नहीं, एक अन्याय का शिकार आत्मा थी, जो सच बाहर लाना चाहती थी।
तभी लड़की की परछाई कुएँ के अंदर उतरी और धीरे-धीरे उसके सामने खड़ी हो गई। उसकी आँखें अब खून से लाल थीं, और उसने कहा —
“मुझे न्याय दिलाओ, मैं तुम्हें छोड़ दूँगी… वरना तुम्हारी हड्डियाँ भी यहीं सड़ेंगी।”
राजीव ने काँपते हुए हामी भर दी। अगले दिन वो किसी तरह गाँव के बुजुर्गों और पुलिस को साथ लाया। जब कुएँ को साफ़ किया गया, तो वहाँ से हड्डियों का ढेर और पीली साड़ी के साथ कुछ गहने निकले।
जाँच हुई, और सच्चाई सामने आई — खेत बर्बाद होने की वजह कोई चुड़ैल नहीं, बल्कि गाँव के कुछ लालची लोग थे, जो ज़मीन हड़पने के लिए लड़की पर इल्जाम लगाकर उसे मार चुके थे।
गुनहगारों को सज़ा मिली। और उसी रात, राजीव के कमरे में वो लड़की आख़िरी बार आई — इस बार मुस्कुराते हुए।
“धन्यवाद… अब मैं मुक्त हूँ।”
धीरे-धीरे उसकी परछाई हवा में घुल गई, और कमरे में एक अजीब-सी शांति फैल गई।