शवघर का आख़िरी राज़

एक अजीब फोन कॉल

रात के करीब 1:17 बजे, इंस्पेक्टर अयान वर्मा का फ़ोन अचानक बज उठा। इस वक्त कॉल आना आमतौर पर मतलब होता था कि या तो कोई खून हो गया है, या फिर कोई बड़ा हादसा।
फोन के दूसरी तरफ़ अजय सिंह, शहर के सरकारी अस्पताल का सीनियर वॉर्ड बॉय, कांपती आवाज़ में बोला —
“साहब… शवघर में कुछ गड़बड़ है। अंदर कोई है… जो… जो मरकर भी ज़िंदा है।”

अयान के माथे पर बल पड़ गए।
“क्या मतलब? साफ़-साफ़ बोलो!”
“साहब, आप खुद आकर देख लो… मैं अंदर नहीं जा रहा। वो चीज़… इंसान नहीं है।”

अयान ने ठंडी सांस ली। पिछले हफ़्ते से शहर में अजीब अफवाहें घूम रही थीं —
अस्पताल के शवघर से आधी रात को रोने और चीख़ने की आवाज़ें आती हैं।
किसी ने कहा अंदर से ठंडी हवा आती है, किसी ने कहा सफेद कपड़ों में एक औरत दिखती है जो दीवार से निकल जाती है।

अयान ने जीप स्टार्ट की और अस्पताल की ओर निकल पड़ा।

शवघर का पहला सामना

सरकारी अस्पताल का शवघर अस्पताल के पीछे, पुराने विंग में था। ईंटों पर सीलन जमी थी, और लोहे का दरवाज़ा पुरानी पेंट की परतें छोड़ चुका था।
अंदर कदम रखते ही ठंडक असामान्य थी। जैसे किसी ने एयर कंडीशनर को माइनस पर चला दिया हो, लेकिन वहां कोई मशीन नहीं थी।

लोहे की मेजों पर सफेद चादर से ढके कई शव पड़े थे।
अयान का ध्यान एक कोने की ओर गया — वहां एक शव बिना टैग के पड़ा था, उसका चेहरा ढका हुआ था।
“ये कौन है?” अयान ने अजय से पूछा।
“पता नहीं साहब… शाम को आया था, लेकिन कोई काग़ज़ात नहीं, कोई रिश्तेदार नहीं।”

अयान ने धीरे से सफेद कपड़ा हटाया… और ठिठक गया।
शव की आंखें खुली हुई थीं, और ऐसा लग रहा था जैसे उसने अभी-अभी सांस ली हो।

पहला डर

अयान को महसूस हुआ कि उस लाश की नजर सीधे उसकी आंखों में गड़ी है।
वो पीछे हटा, लेकिन तभी… शव की पलक हल्की सी फड़की।
“अजय, लाइट बंद करो मत!”
“साहब, मैंने तो…”, अजय का वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था कि ऊपर लगी ट्यूबलाइट झपकने लगी, और पूरा शवघर अंधेरे में डूब गया।

ठीक उसी पल, एक महिला की फुसफुसाहट गूंजी —
“तुम देर से आए हो, अयान…”

अयान का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। आवाज़ सीधी उसके कान में थी, लेकिन वहां कोई नहीं था।

जांच की शुरुआत

अगले दिन अयान ने उस शव के बारे में रिकॉर्ड खंगाले। कोई नाम नहीं, कोई एफआईआर नहीं, कोई लापता रिपोर्ट भी नहीं।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बस लिखा था — “हार्ट अटैक”, लेकिन कोई मेडिकल हिस्ट्री नहीं।

वो डॉक्टर रिया मल्होत्रा से मिला, जो उस रात ड्यूटी पर थीं।
रिया ने कहा —
“अजीब बात है, इंस्पेक्टर… ये शव आने के बाद से शवघर में गंध बदल गई है। एक तरह की… सड़ी हुई मिट्टी की महक। और कल रात मैंने सुना… जैसे कोई मेरा नाम पुकार रहा हो।”

अयान ने नोट किया — ये मामला सिर्फ मेडिकल नहीं, शायद पैरानॉर्मल भी है।

सफेद कपड़े वाली औरत

तीसरी रात अयान खुद कैमरा और रिकॉर्डर लेकर शवघर में बैठ गया।
रात के 2:05 बजे, तापमान अचानक गिरा। कैमरे की स्क्रीन पर एक धुंधला सा सिल्हूट उभरा —
सफेद साड़ी में एक औरत, जिसके बाल आधे चेहरे पर थे।

वो धीरे-धीरे उस बिना नाम वाले शव की ओर बढ़ी, और उसके कान में कुछ फुसफुसाई।
अयान ने सुनने की कोशिश की, लेकिन सिर्फ तीन शब्द साफ़ आए —
“मेरा बच्चा लौटाओ।”

अचानक वो औरत मुड़ी… और सीधे कैमरे की तरफ़ देखी।
अयान का दिल जम सा गया — उसकी आंखें बिल्कुल काली थीं, बिना सफ़ेदी के।

बलराज मित्तल का नाम

रिकॉर्डिंग को स्लो मोशन में सुनने पर एक और नाम साफ़ निकला — बलराज मित्तल
अयान ने तुरंत डेटा चेक किया। बलराज मित्तल — शहर का सबसे अमीर बिल्डर, लेकिन 8 साल पहले उसकी फैक्ट्री में बड़ा हादसा हुआ था।
आग लगी, 14 मजदूर जलकर मर गए, जिनमें कुछ महिलाएं भी थीं। केस दबा दिया गया, कोई सबूत नहीं मिला।

लेकिन एक फोटो मिली — उन मृत महिलाओं में एक थी सुजाता, जो उसी सफेद साड़ी में थी जैसी कैमरे में दिखी थी।
और सबसे चौंकाने वाली बात — उसके हाथ में एक छोटा बच्चा था, जो हादसे के बाद कभी नहीं मिला।

गहरी खुदाई

अयान ने फैक्ट्री का पुराना रिकॉर्ड खंगाला। एक गुमनाम चिट्ठी मिली जिसमें लिखा था —
“बलराज ने आग लगवाई थी, ताकि जमीन खाली हो जाए। सुजाता ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन वो…”

चिट्ठी अधूरी थी, लेकिन अयान समझ गया — सुजाता की मौत एक हत्या थी।

अंतिम रात

अयान ने सुजाता के शव को कब्र से निकालने का आदेश लिया, ताकि डीएनए से बच्चे का पता चल सके।
रात में शवघर में खुद मौजूद रहा।
2:13 पर, फिर वही ठंड, वही आवाज़ —
“तुमने वादा किया था, अयान… मेरा बच्चा लाओगे।”

अचानक बिना नाम वाला शव उठकर बैठ गया। उसकी आंखें बिल्कुल काली थीं, और होंठ सिल दिए गए थे।
उसने हाथ बढ़ाकर अयान की गर्दन पकड़ ली।
ठीक उसी समय सफेद साड़ी वाली औरत प्रकट हुई… उसने बच्चे की तरफ़ इशारा किया — लेकिन वहां कोई बच्चा नहीं था, बस एक छोटा लकड़ी का बक्सा था।

अयान ने बक्सा खोला — अंदर एक नवजात की राख थी, और साथ ही बलराज मित्तल का गोल्डन रिंग।

अंत और बदला

सुबह होते ही अयान ने बलराज मित्तल को गिरफ्तार कर लिया।
DNA रिपोर्ट ने साबित कर दिया — बच्चा बलराज और सुजाता का था, और फैक्ट्री की आग में मारा गया।
बलराज ने कबूल किया कि उसने अपनी गैरकानूनी औलाद को दुनिया से छुपाने के लिए सब खत्म कर दिया।

अयान ने सुजाता की राख को गंगा में विसर्जित किया।
उस रात शवघर में पहली बार शांति थी — कोई ठंडी हवा नहीं, कोई फुसफुसाहट नहीं।

लेकिन अयान को पता था — शवघर का आख़िरी राज़ खत्म नहीं हुआ था।
क्योंकि जाते-जाते, हवा में हल्की सी आवाज़ आई —
“मैं फिर आऊंगी…”

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