कभी हार मत मानो

कभी हार मत मानो

यह कहानी एक साधारण परिवार की लड़की की है, जिसने गरीबी, समाज की बाधाएँ और पारिवारिक समस्याओं का सामना किया।
हर मोड़ पर उसे लगा कि सपने टूट जाएंगे, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।
यह सफर हमें सिखाता है कि कभी हार मत मानो, चाहे हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हों।
अगर आप भी जिंदगी में संघर्ष कर रहे हैं, तो यह कहानी आपको नया उत्साह देगी।


संघर्ष की शुरुआत

छोटे से कस्बे के किनारे, मिट्टी और ईंट से बने घर में सपना का जन्म हुआ।
परिवार गरीब था, पिता दिहाड़ी मजदूर और माँ घर में सिलाई का काम करती थी।
घर की हालत ऐसी थी कि बारिश होते ही दीवारें भीग जातीं और छत टपकने लगती।
लेकिन इन सबके बीच सपना के अंदर एक अनोखी चमक थी।

बचपन से ही उसकी आँखों में बड़े सपने थे।
जब भी वह स्कूल जाती, पुरानी किताबों और टूटी हुई पेंसिल के बावजूद वह क्लास की सबसे होशियार छात्रा मानी जाती।
शिक्षक अक्सर कहते—

“यह लड़की मेहनत करेगी तो बहुत आगे जाएगी।”

लेकिन घरवालों और पड़ोसियों की सोच कुछ और थी।
गाँव के लोग ताना मारते—

“लड़कियाँ पढ़कर क्या करेंगी? दो दिन में शादी हो जाएगी, पढ़ाई का क्या फायदा?”

सपना चुपचाप यह सब सुन लेती, पर दिल में एक आवाज गूंजती रहती—
“कभी हार मत मानो।”


गरीबी और शुरुआती लड़ाई

पिता की कमाई इतनी नहीं थी कि स्कूल की फीस समय पर भरी जा सके।
कई बार सपना को क्लास में बैठने से भी रोक दिया गया।
उसकी माँ अपनी सिलाई से थोड़े पैसे जोड़कर किसी तरह फीस भरती।

एक बार तो हालात ऐसे हो गए कि फीस भरने के पैसे बिल्कुल नहीं थे।
स्कूल के प्रिंसिपल ने साफ कह दिया:

“अगर अगले हफ्ते तक फीस नहीं आई, तो सपना का नाम काट दिया जाएगा।”

यह सुनकर माँ की आँखों से आँसू बह निकले।
सपना ने माँ का हाथ पकड़कर कहा—

“माँ, चिंता मत करो। मैं खुद कुछ करूँगी। कभी हार मत मानो, यही मैंने खुद से वादा किया है।”


पहली कमाई

सपना ने पास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया।
दिन में स्कूल और शाम को दो घंटे बच्चों को पढ़ाना— यही उसकी दिनचर्या बन गई।
ट्यूशन से मिली थोड़ी-सी कमाई से उसने अपनी फीस भरी।
यह उसकी जिंदगी की पहली कमाई थी।

जब उसने फीस का रसीद अपने पिता के हाथ में दिया, तो वे चौंक गए।
पिता ने कहा—

“बेटी, तूने यह कर दिखाया? हम सोचते थे कि तुझे पढ़ाई में रोकना पड़ेगा।”

सपना ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—

“बाबा, मैंने खुद से वादा किया है कि मैं कभी हार मत मानो का मतलब दुनिया को दिखाऊँगी।”


समाज का विरोध

लेकिन समाज इतनी आसानी से मानने वाला नहीं था।
लोग बातें बनाते, ताने मारते—

“लड़की होकर पैसे कमाती है, ये कैसा काम है?”
“इतनी पढ़ाई करके करेगी क्या?”

सपना इन सब बातों से टूटने के बजाय और मजबूत हो गई।
उसने ठान लिया कि उसे सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि उन सभी लड़कियों के लिए लड़ना है जिन्हें समाज रोकता है।


धीरे-धीरे सपना की मेहनत रंग लाई।
वह स्कूल की सबसे टॉपर छात्रा बनी और जिले की मेरिट लिस्ट में उसका नाम आया।
जब अखबार में उसकी फोटो छपी, तो वही लोग जो उसे रोकते थे, अब कहते—

“यह लड़की सच में कमाल कर रही है।”

लेकिन सपना जानती थी कि यह उसकी असली यात्रा की सिर्फ शुरुआत है।
क्योंकि उसे अब कॉलेज जाना था, और वहाँ इंतजार कर रही थीं और भी बड़ी चुनौतियाँ।

उसने डायरी में लिखा—
“मुझे अभी और लड़ाई लड़नी है, लेकिन मैं कभी हार मत मानो का वादा निभाऊँगी।”

कॉलेज की नई चुनौतियाँ

स्कूल की सफलता के बाद सपना का नाम पूरे जिले में छा गया।
अखबारों में उसकी तस्वीर छपी और लोग अब उसे सम्मान देने लगे।
लेकिन असली सवाल अब सामने था—
“आगे क्या?”

सपना का सपना था कि वह शहर जाकर कॉलेज में दाखिला ले।
उसका मन सिर्फ ग्रेजुएशन तक सीमित नहीं था; वह IAS बनना चाहती थी।
लेकिन पिता की कमाई इतनी नहीं थी कि बड़े कॉलेज का खर्च उठा सकें।

पिता ने धीरे से कहा—

“बेटी, हम चाह तो रहे हैं कि तू पढ़े, पर हमारे बस में नहीं। फीस, किताबें, हॉस्टल का खर्चा… यह सब कहाँ से आएगा?”

सपना ने दृढ़ स्वर में कहा—

“बाबा, हम रास्ता निकाल लेंगे। मैंने हमेशा खुद से कहा है कि कभी हार मत मानो। और मैं हार नहीं मानूँगी।”


शहर की पहली सुबह

काफी संघर्षों और रिश्तेदारों से उधार लेकर आखिरकार सपना शहर पहुँच गई।
छोटे से गाँव से निकलकर जब उसने पहली बार शहर की चमचमाती इमारतें देखीं, तो दिल डर और उत्साह दोनों से भर गया।
वह एक साधारण-सा हॉस्टल का कमरा लेकर वहाँ रहने लगी।
कमरा छोटा था, पर उसके सपनों से बड़ा।

कॉलेज के पहले दिन, उसने साफ-सुथरी लेकिन पुरानी ड्रेस पहनी।
क्लास में पहुंचते ही उसे महसूस हुआ कि बाकी छात्र-छात्राओं के पास सब कुछ नया है—महंगे बैग, मोबाइल, लैपटॉप।
उसके पास बस पुरानी किताबें और एक डायरी थी।

क्लास में कुछ लड़कियाँ उसे देखकर हँस पड़ीं—

“ये गाँव से आई है क्या? देखो कपड़े कैसे हैं।”

सपना ने यह सब सुना, पर चुप रही।
उसके अंदर की आवाज़ बार-बार कह रही थी—
“कभी हार मत मानो।”


पढ़ाई और काम साथ-साथ

कॉलेज की फीस भरने के लिए सपना को फिर से काम करना पड़ा।
वह सुबह हॉस्टल से निकलकर कॉलेज जाती और शाम को बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती।
कई बार तो उसे खाना छोड़ना पड़ता ताकि थोड़े पैसे बचा सके।

लेकिन वह हार नहीं मानी।
क्लास में उसकी मेहनत सबको चौंका देती।
जहाँ बाकी छात्र किताबों के नोट्स खरीदते, वहीं सपना घंटों लाइब्रेरी में बैठकर हाथ से नोट्स बनाती।

धीरे-धीरे प्रोफेसर भी उसकी लगन को पहचानने लगे।
एक प्रोफेसर ने कहा—

“तुम्हारी मेहनत देखकर लगता है कि तुम सच में बहुत आगे जाओगी। याद रखना, कभी हार मत मानो।”

यह वाक्य सुनकर सपना की आँखों में चमक आ गई।
क्योंकि यही तो उसकी जिंदगी का मंत्र था।


समाज और रिश्तेदारों की नई दीवारें

लेकिन सपनों की राह में समाज बार-बार रोड़े अटका रहा था।
गाँव से खबरें आतीं कि लोग बातें बना रहे हैं—

“लड़की अकेली शहर में पढ़ रही है, पता नहीं क्या कर रही होगी।”
“इतनी पढ़ाई से शादी कौन करेगा?”

यह बातें सुनकर पिता का मन भी कभी-कभी डगमगा जाता।
एक बार उन्होंने सपना को फोन किया और कहा—

“बेटी, लोग हमें बहुत कुछ कह रहे हैं। शायद तू पढ़ाई छोड़ दे तो अच्छा होगा।”

सपना रो पड़ी, पर उसने दृढ़ स्वर में जवाब दिया—

“बाबा, मैं सिर्फ अपने लिए नहीं, आपके लिए पढ़ रही हूँ।
मैं सबको साबित करूँगी कि आपकी बेटी किसी से कम नहीं।
और इसके लिए मैं कभी हार मत मानो का वादा नहीं तोड़ूँगी।”


पहली बड़ी जीत

कॉलेज के पहले साल में यूनिवर्सिटी की परीक्षा हुई।
क्लास के सभी छात्र मानते थे कि टॉपर वही होंगे जिनके पास पैसे और संसाधन हैं।
लेकिन रिजल्ट आने के दिन पूरा कॉलेज चौंक गया—
सपना यूनिवर्सिटी की टॉपर थी।

अखबारों में एक बार फिर उसका नाम छपा।
प्रोफेसर ने पूरे कॉलेज के सामने उसकी तारीफ की।
अब वही लड़कियाँ जो उसे ताने देती थीं, उसकी दोस्ती चाहने लगीं।

लेकिन सपना के मन में बस यही था—
“यह तो बस शुरुआत है। मुझे IAS बनना है।
इसके लिए मुझे अभी और कठिन रास्ते तय करने हैं।”

उस रात अपनी डायरी में उसने लिखा—
“आज फिर साबित हुआ कि जिंदगी का सबसे बड़ा मंत्र है—कभी हार मत मानो।”


कॉलेज का सफर अब और कठिन होने वाला था।
क्योंकि IAS की तैयारी के लिए उसे दिल्ली जाना था, और वहाँ की फीस व रहने का खर्च गाँव के गरीब परिवार के लिए असंभव था।

पर सपना ने ठान लिया—
“मैं रास्ता निकालूँगी। क्योंकि मैंने खुद से वादा किया है—कभी हार मत मानो।”

दिल्ली का सफर

कॉलेज की टॉपर बनने के बाद सपना ने ठान लिया कि अब अगला कदम IAS की तैयारी है।
उसने अखबारों और इंटरनेट पर रिसर्च की और जाना कि IAS की सबसे अच्छी तैयारी दिल्ली में होती है।
लेकिन दिल्ली जाना मतलब—बहुत खर्च।

पिता ने धीरे से कहा—

“बेटी, दिल्ली बहुत महँगी जगह है। हम तुझे इतना पैसा नहीं भेज सकते।”

सपना ने दृढ़ स्वर में कहा—

“बाबा, पैसे की चिंता मत कीजिए। मैं कुछ भी कर लूँगी, लेकिन हार नहीं मानूँगी।
मैंने खुद से वादा किया है कि कभी हार मत मानो।”


दिल्ली की पहली झलक

दिल्ली की भीड़, ट्रैफिक और ऊँची इमारतें देखकर सपना अचंभित रह गई।
गाँव की शांत गलियों से निकलकर जब वह इस भीड़भाड़ वाले शहर में पहुँची, तो दिल में डर भी था और उम्मीद भी।

वह एक सस्ती-सी जगह पर पीजी में रहने लगी।
कमरा छोटा था, चार लड़कियों के साथ रहना पड़ता था।
गर्मी में पंखा ठीक से नहीं चलता और सर्दी में कंबल कम पड़ते थे।

लेकिन इन सबके बीच सपना के मन में बस एक ही बात थी—
“मुझे IAS बनना है, और इसके लिए मुझे कभी हार मत मानो का मंत्र निभाना होगा।”


कोचिंग और कठिनाई

दिल्ली में IAS कोचिंग बेहद महँगी थी।
फीस सुनकर सपना के होश उड़ गए।
उसने तुरंत फैसला किया कि वह किसी बड़ी कोचिंग में नहीं, बल्कि सस्ती लाइब्रेरी में पढ़ाई करेगी।

वह सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक लाइब्रेरी में बैठी रहती।
कई बार उसे सिर्फ ब्रेड और चाय पर दिन गुजारना पड़ता।
लेकिन उसकी मेहनत में कोई कमी नहीं आती।

लाइब्रेरी के मालिक अंकल ने एक दिन उससे कहा—

“बेटा, मैं रोज देखता हूँ तुम घंटों पढ़ती हो। बस याद रखना, थकना मत… कभी हार मत मानो।”

यह सुनकर सपना की आँखों में चमक आ गई।
क्योंकि यही तो उसकी असली ताकत थी।


अकेलापन और टूटने के पल

दिल्ली का अकेलापन आसान नहीं था।
गाँव से दूर, परिवार से दूर, हर रात सपना अपने छोटे कमरे में रोती।
कभी-कभी उसे लगता कि शायद यह सफर उसके बस का नहीं।

एक बार उसने माँ को फोन किया और कहा—

“माँ, लगता है मैं टूट जाऊँगी।”

माँ ने धीमे स्वर में जवाब दिया—

“बेटी, जब तू पैदा हुई थी, तब भी हालात कठिन थे।
लेकिन तूने हमेशा हमें गर्व महसूस कराया है।
याद रख, कभी हार मत मानो।”

यह शब्द सपना के लिए जीवनरेखा बन गए।
उसने आँसू पोंछे और फिर से किताबों में डूब गई।


पहली असफलता

कड़ी मेहनत के बाद सपना ने पहली बार UPSC की परीक्षा दी।
उसने सोचा था कि अब वह IAS बन जाएगी।
लेकिन जब रिजल्ट आया, तो उसका नाम लिस्ट में नहीं था।

उसकी दुनिया जैसे थम गई।
कमरे में बैठकर वह घंटों रोती रही।
उसके दोस्त भी कहने लगे—

“IAS सबके बस की बात नहीं होती।”

लेकिन सपना ने खुद से कहा—
“नहीं। यह मेरी हार नहीं।
मैंने खुद से वादा किया है कि मैं कभी हार मत मानो का मतलब दुनिया को दिखाऊँगी।”


पहली असफलता के बाद सपना टूट चुकी थी, लेकिन उसने हार नहीं मानी।
उसने अपनी गलती पहचानी—
वह रटकर पढ़ रही थी, लेकिन गहराई से समझ नहीं पा रही थी।

उसने स्ट्रैटेजी बदली, नए नोट्स बनाए, और फिर से पूरी ताकत के साथ तैयारी शुरू की।
उसकी डायरी में एक लाइन लिखी थी—
“असफलता हार नहीं है। हार तब है जब इंसान कोशिश करना छोड़ दे। और मैं कभी हार मत मानो की मिसाल बनूँगी।”

असफलता से सीख

पहली बार UPSC परीक्षा में नाम न आने के बाद सपना कई दिन तक खुद से लड़ती रही।
उसके मन में बार-बार सवाल उठता—
“क्या सच में मैं इस लायक नहीं हूँ?”

लेकिन एक दिन उसने अपनी पुरानी डायरी खोली।
उसमें लिखा था—

“हार तब है जब कोशिश छोड़ दी जाए। जीत तब है जब हर असफलता को नई कोशिश में बदल दिया जाए।”

उसने खुद से कहा—
“कभी हार मत मानो।”


नई तैयारी, नई स्ट्रैटेजी

सपना ने महसूस किया कि उसकी पहली तैयारी अधूरी थी।
वह सिर्फ रट रही थी, समझ नहीं रही थी।
इस बार उसने ठान लिया कि हर विषय को गहराई से पढ़ेगी।

उसने टाइम-टेबल बनाया:

  • सुबह 6 बजे उठकर अखबार और करंट अफेयर्स।
  • 8 बजे से 2 बजे तक लाइब्रेरी।
  • शाम को टेस्ट सीरीज़।
  • रात को दिनभर की दोहराई।

कभी-कभी थकान इतनी होती कि आँखें अपने आप बंद होने लगतीं।
लेकिन वह खुद को जगाती और कहती—
“सपना, याद रख… कभी हार मत मानो।”


दोस्तों का साथ और धोखा

इस बार तैयारी के दौरान सपना को कुछ अच्छे दोस्त मिले।
रश्मि और विकास नाम के दो छात्र अक्सर उसके साथ पढ़ते।
तीनों एक-दूसरे को पढ़ाई में हेल्प करते।

लेकिन धीरे-धीरे सपना ने महसूस किया कि सब उसकी मेहनत का फायदा उठा रहे हैं।
रश्मि उसके नोट्स लेकर खुद पढ़ती, लेकिन जब सपना को जरूरत पड़ती, तो वह टाल देती।
विकास ने भी एक बार उसका मजाक उड़ाते हुए कहा—

“तू इतनी मेहनत क्यों कर रही है? लड़कियाँ IAS नहीं बन पातीं। शादी कर ले।”

यह सुनकर सपना को गुस्सा भी आया और दुख भी।
लेकिन उसने गहरी साँस ली और मन में दोहराया—
“कभी हार मत मानो।”


परीक्षा से पहले का संघर्ष

परीक्षा नजदीक थी।
सपना की हालत खराब हो रही थी।
कमरे का किराया चुकाने के लिए उसने कई बार ट्यूशन ली, जिससे पढ़ाई का टाइम कम हो गया।

उसने कई रातें बिना सोए पढ़ाई कीं।
सर्दियों की ठंडी रातों में भी वह सिर्फ एक कंबल ओढ़कर किताबों में डूबी रहती।
कभी-कभी हाथ काँपने लगते, पर वह रुकती नहीं।

उसके मन में बस यही था—
“अगर इस बार भी हार गई तो क्या होगा?
नहीं, मुझे हारना नहीं है।
मैंने खुद से वादा किया है—कभी हार मत मानो।”


दूसरी परीक्षा और नतीजा

आख़िरकार वह दिन आया।
सपना ने परीक्षा दी।
इस बार उसने पूरी मेहनत झोंक दी थी।

रिजल्ट आने का दिन पूरे दिल्ली के कोचिंग हब में जैसे त्यौहार की तरह था।
सभी छात्र मोबाइल और नोटिस बोर्ड पर आँखें गड़ाए बैठे थे।

सपना ने जैसे ही रिजल्ट देखा, उसकी आँखें छलक गईं।
उसका नाम लिस्ट में था।
हालाँकि वह टॉप में नहीं थी, लेकिन उसने मेन परीक्षा क्वालिफाई कर ली थी।

वह दौड़कर अपनी डायरी में लिखी—
“आज साबित हो गया कि जिंदगी का असली मंत्र है—कभी हार मत मानो।”


लेकिन सफर अभी खत्म नहीं हुआ था।
IAS का असली इम्तहान अभी बाकी था—
इंटरव्यू, जहाँ सिर्फ पढ़ाई नहीं बल्कि आत्मविश्वास, व्यक्तित्व और धैर्य की भी परीक्षा होती है।

सपना जानती थी कि असली लड़ाई अभी शुरू हुई है।
उसने आईने में खुद को देखा और धीरे से कहा—
“कभी हार मत मानो।”

इंटरव्यू की तैयारी

मेन परीक्षा पास करने के बाद सपना का नाम इंटरव्यू लिस्ट में आया।
यह सुनकर उसके माता-पिता खुशी से रो पड़े।
गाँव के लोग भी कहने लगे—

“देखो, हमारे गाँव की बेटी अब IAS बनेगी।”

लेकिन सपना जानती थी कि यह सफर आसान नहीं है।
किताबों के पन्नों से आगे अब उसे अपने व्यक्तित्व को साबित करना था।

उसने यूट्यूब पर IAS इंटरव्यू देखना शुरू किया, पुराने प्रश्नपत्र पढ़े और खुद आईने के सामने बैठकर प्रैक्टिस करने लगी।
रोज आईने के सामने कहती—
“तू कर सकती है। तू हार नहीं मानेगी। याद रख—कभी हार मत मानो।”


डर और आत्मविश्वास की जंग

दिल्ली की लाइब्रेरी में कई बार उसे ऐसे छात्र मिलते जो कहते—

“इंटरव्यू बहुत कठिन होता है। वहाँ तुम्हारी हर हरकत देखी जाती है।”

यह सुनकर सपना की धड़कनें तेज हो जातीं।
उसे लगता कि शायद वह इतना आत्मविश्वासी नहीं है।
लेकिन फिर माँ की आवाज़ उसके कानों में गूँजती—

“बेटी, तू चाहे जितनी बार गिरे, लेकिन याद रखना—कभी हार मत मानो।”

उसने खुद को मानसिक रूप से मजबूत करना शुरू किया।
हर सुबह योग करती, ध्यान लगाती और मन में दोहराती—
“मैं कर सकती हूँ। मैं कभी हार मत मानो।”


इंटरव्यू का दिन

आख़िरकार वह दिन आ ही गया।
सपना सादे सूट में, हाथ में फाइल लिए, इंटरव्यू बोर्ड के सामने पहुँची।
दिल इतनी तेज़ धड़क रहा था कि उसे अपनी साँसें भी सुनाई दे रही थीं।

कमरे में पाँच इंटरव्यूवर बैठे थे।
पहला सवाल आया—

“आप गाँव से हैं। गाँव में लड़कियों की स्थिति कैसी है और आप इसमें क्या बदलाव लाएँगी?”

सपना ने गहरी साँस ली और बोली—

“सर, गाँव की लड़कियों के पास सपने होते हैं लेकिन मौके नहीं।
अगर मुझे मौका मिला तो मैं शिक्षा और रोजगार को हर गाँव तक पहुँचाऊँगी।”

कमरे में सन्नाटा छा गया।
इंटरव्यूवर मुस्कुराए और बोले—

“अच्छा जवाब।”


कठिन सवाल

फिर एक और सवाल आया—

“अगर आपको कभी भ्रष्ट अधिकारियों के दबाव में गलत फैसले लेने पड़ें तो आप क्या करेंगी?”

सपना थोड़ी देर चुप रही।
फिर आत्मविश्वास से बोली—

“सर, IAS बनना सिर्फ कुर्सी पाना नहीं है, बल्कि लोगों की सेवा करना है।
मैं जानती हूँ कि दबाव बहुत होंगे, लेकिन मैंने अपने जीवन में यही सीखा है—कभी हार मत मानो।
चाहे दबाव कितना भी हो, मैं अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करूँगी।”

इस जवाब ने पूरे इंटरव्यू बोर्ड को प्रभावित कर दिया।


परिणाम और निराशा

दिन बीत गए।
रिजल्ट आया।
सपना का नाम आखिरकार रिजर्व लिस्ट में था।

मतलब—वह IAS नहीं बन पाई थी, लेकिन अगले मौके के लिए वह योग्य मानी गई थी।
उसका दिल टूट गया।
इतनी मेहनत, इतनी उम्मीद… और फिर भी अधूरी जीत।

उसने अकेले में बैठकर रोते हुए लिखा—
“क्या मैं सच में हार गई?
नहीं… मैंने खुद से वादा किया है—कभी हार मत मानो।
यह तो बस शुरुआत है।”


सपना को समझ आ गया कि IAS का रास्ता इतना आसान नहीं है।
पहली बार इंटरव्यू तक पहुँचना अपने आप में बड़ी उपलब्धि थी, लेकिन असली मंज़िल अभी दूर थी।
उसके मन में ठान लिया—
“मैं रुकने वाली नहीं हूँ। अगली बार और मजबूत बनकर लौटूँगी।
क्योंकि जिंदगी का असली मंत्र है—कभी हार मत मानो।”

भाग 2:- कभी हार मत मानो : असफलता की चोट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *