प्यार जो जान ले गया

प्यार जो जान ले गया

रीमा का परिवार और आलीशान ज़िंदगी

दिल्ली के पॉश इलाके साउथ एक्सटेंशन में एक आलीशान कोठी खड़ी थी। उस घर को देखकर कोई भी कह सकता था कि यहाँ दौलत और रुतबे की कोई कमी नहीं। ऊँची दीवारें, महंगी कारें और हर कोने में चमक बिखरी हुई थी।

इसी घर में रहती थी रीमा, जो अपने कॉलेज में सबसे खूबसूरत लड़कियों में गिनी जाती थी। उसकी लंबाई 5.6 फीट, गोरा रंग और चमकदार बाल उसे सबकी नज़रों का केंद्र बना देते थे। जब वह कैंपस में चलती थी तो जैसे हवा भी थम जाती।

पिता का बिज़नेस और माँ की पहचान

रीमा के पिता अरविंद मल्होत्रा बड़े बिज़नेसमैन थे। उनका गारमेंट का व्यापार कई राज्यों में फैला था। उसकी माँ एक नामी सोशल वर्कर थीं, जिनकी तस्वीरें अक्सर अखबारों और टीवी पर दिखाई देती थीं। रीमा उनकी इकलौती संतान थी। इसलिए बचपन से ही उसे हर सुख-सुविधा मिली।

रीमा के जीवन का खालीपन

पैसे और शोहरत के बीच भी रीमा के जीवन में एक गहरा खालीपन था। उसके माता-पिता हमेशा अपने-अपने काम में व्यस्त रहते। घर बड़ा था लेकिन उसमें अपनापन कम था। यही वजह थी कि बचपन से ही रीमा को असली प्यार और साथ की तलाश रही।

कॉलेज में भी यही हाल था। बहुत से लड़के उसके दोस्त बनना चाहते थे, लेकिन रीमा को लगता था कि कोई भी उसे सच में नहीं समझता। सब उसकी खूबसूरती और रुतबे से आकर्षित थे।

कहानी की शुरुआत

रीमा दिल से चाहती थी कि कोई ऐसा मिले जो उसकी हँसी के पीछे छिपे अकेलेपन को पहचान सके।
यहीं से उस कहानी की शुरुआत होती है, जो बाद में इतनी गहरी और दर्दनाक होगी कि लोग हमेशा याद करेंगे — यह वही किस्सा है “प्यार जो जान ले गया”

अजय का परिवार और गाँव की ज़िंदगी

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में रहता था अजय। उसकी लंबाई 5.8 फीट थी और चेहरे पर एक सादगी भरी मुस्कान रहती थी। पढ़ाई में वह हमेशा होशियार रहा। गाँव के स्कूल में उसकी मेहनत और लगन सबको प्रेरणा देती थी।

अजय का परिवार मध्यमवर्गीय था। उसके पिता एक छोटे किसान थे। माँ घर का काम संभालती थीं। घर में अक्सर पैसों की तंगी रहती थी। कभी खेत की फसल खराब हो जाती तो कभी दाम गिर जाते। लेकिन फिर भी परिवार ने अजय की पढ़ाई रुकने नहीं दी।

अजय के सपने

अजय का सपना था कि वह अच्छी पढ़ाई करके अपने परिवार की हालत सुधारे। अक्सर वह सोचता, “माँ-बाबूजी ने कितनी मुश्किलें झेली हैं, अब मेरी ज़िम्मेदारी है कि सबको बेहतर जीवन दूँ।” यही सोच उसे दिन-रात मेहनत करने के लिए प्रेरित करती थी।

शहर आने का सफ़र

बारहवीं में अच्छे अंक लाने के बाद अजय ने शहर के एक बड़े कॉलेज में एडमिशन लिया। यह उसके लिए सपनों की दुनिया जैसा था। गाँव की सादगी से निकलकर जब उसने शहर की भीड़ और चमक-धमक देखी, तो उसे नया अनुभव हुआ।

शहर की तेज़ रफ़्तार में अजय को शुरू में मुश्किलें आईं। नए दोस्त बनाना आसान नहीं था। पैसे की कमी ने भी उसे कई बार शर्मिंदा किया। लेकिन वह जानता था कि अगर मेहनत जारी रखी तो सब आसान हो जाएगा।

कहानी की राह

अजय को अंदाज़ा भी नहीं था कि इसी कॉलेज में उसकी मुलाक़ात रीमा से होगी। वही रीमा जिसकी दुनिया बहुत आलीशान थी। दोनों की दुनिया अलग थी, लेकिन कहानी एक ही राह पर चलने वाली थी। और यही कहानी आगे जाकर बन गई “प्यार जो जान ले गया”

कॉलेज का पहला दिन

अजय का पहला दिन कॉलेज में बहुत अलग था। वह गाँव की सादगी से आया था। इधर शहर के स्टूडेंट्स फैशनेबल और आत्मविश्वासी दिखते थे। वह लाइब्रेरी और क्लासरूम में चुपचाप बैठा रहता।

दूसरी ओर, रीमा भी उसी दिन कॉलेज पहुँची। उसके लिए भी यह एक नया सफर था। लेकिन फर्क यह था कि सबकी नज़रें उसी पर टिकी थीं। लड़कियाँ उसकी स्टाइल की तारीफ कर रही थीं और लड़के उससे दोस्ती करने की कोशिश।

पहली नज़र का असर

इसी भीड़ में जब अजय की नज़र रीमा पर पड़ी, तो जैसे सब थम गया। उसकी सादगी भरी आँखों में अचानक चमक आ गई। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्यों रीमा को देखकर दिल की धड़कनें तेज़ हो रही हैं।

रीमा ने भी अजय को नोटिस किया। वह बाकी लड़कों की तरह दिखावा करने वाला नहीं था। उसकी आँखों में एक मासूमियत थी। शायद यही बात रीमा को अलग लगी। उसने मुस्कुराकर अजय की तरफ देखा।

दोस्ती की शुरुआत

कुछ दिनों बाद एक प्रोजेक्ट के लिए दोनों को साथ काम करना पड़ा। शुरुआत में अजय झिझकता रहा। लेकिन रीमा ने सहज होकर उससे बातें शुरू कीं। दोनों की सोच अलग थी, पर दिल से वे जुड़ने लगे।

अजय को लगता था जैसे उसे वह इंसान मिल गया है जो सच में उसे समझ सकता है। रीमा को भी उसकी सच्चाई भाने लगी। धीरे-धीरे क्लास में, कैंटीन में और लाइब्रेरी में दोनों का साथ बढ़ने लगा।

कहानी का मोड़

यह दोस्ती दोनों की ज़िंदगी बदलने वाली थी। अजय ने पहली बार महसूस किया कि वह रीमा को खोना नहीं चाहता। लेकिन यह सफर आसान नहीं था। यही वह पड़ाव था, जहाँ से शुरू हुई असली कहानी — वही कहानी जिसे लोग हमेशा याद करेंगे “प्यार जो जान ले गया”

साथ बिताए पल

दिन बीतने लगे और अजय-रीमा की दोस्ती गहरी होती गई। क्लास प्रोजेक्ट्स अब उनके लिए बहाना बन चुके थे। कैंटीन की चाय से लेकर लाइब्रेरी की खामोशी तक, हर जगह दोनों का साथ दिखने लगा।

रीमा को महसूस होता कि अजय दूसरों से अलग है। उसके पास न दौलत थी, न बड़ी पहचान। लेकिन उसकी सच्चाई और ईमानदारी, उसे सबसे खास बना देती थी।

अजय की भावनाएँ

अजय का दिल अब हर वक्त रीमा में खोया रहता। जब भी वह हँसती, अजय का दिन संवर जाता। जब वह किसी और से बातें करती, अजय को अजीब-सी जलन होती। वह समझ चुका था कि यह सिर्फ दोस्ती नहीं रही।

लेकिन अजय ने अपने जज़्बात दबाकर रखे। उसे डर था कि कहीं अपनी भावनाएँ जताकर वह दोस्ती न खो दे। इसलिए उसने सबकुछ चुपचाप सहना शुरू कर दिया।

रीमा का असर

रीमा भी अजय की परवाह करने लगी थी। अगर वह उदास होता तो पूछती — “सब ठीक है ना?” उसकी यह चिंता अजय को और गहराई से बाँध देती। धीरे-धीरे दोनों का रिश्ता अनकहे वादों से भरने लगा।

कहानी का बढ़ता रंग

दोनों की मुलाकातें कॉलेज के दिनों को खुशनुमा बना रही थीं। अजय के लिए यह जीवन का सबसे खूबसूरत दौर था। लेकिन उसे अंदाज़ा नहीं था कि यही खुशी एक दिन उसकी सबसे बड़ी तकलीफ़ बनेगी।

क्योंकि यही तो किस्सा था — वही किस्सा जिसे दुनिया जानने वाली थी “प्यार जो जान ले गया”

अजय की बेचैनी

समय बीतने के साथ अजय का मन और बेचैन होता गया। हर रोज़ वह सोचता कि रीमा को अपने दिल की बात कह दे। लेकिन फिर डर जाता। उसे लगता कि अगर रीमा ने इनकार कर दिया, तो उनकी दोस्ती भी टूट जाएगी।

दिल का राज़

एक शाम कैंटीन में बैठे-बैठे अजय ने हिम्मत जुटाई। उसने तय किया कि अब चुप रहना संभव नहीं है। उसने धीरे से कहा —
“रीमा, मुझे तुमसे कुछ कहना है… कुछ ऐसा जो मैं लंबे समय से छुपा रहा हूँ।”

रीमा ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में सच्चाई साफ़ झलक रही थी। पर अजय की धड़कन इतनी तेज़ थी कि उसे अपने शब्द पूरे करने में मुश्किल हो रही थी।

रीमा की प्रतिक्रिया

अजय बोल ही पाया था — “रीमा, मैं तुमसे…” कि रीमा ने मुस्कुराकर कहा —
“अजय, हम बहुत अच्छे दोस्त हैं। लेकिन इससे ज़्यादा कुछ नहीं।”

यह सुनकर अजय का दिल टूट गया। उसकी उम्मीदें जैसे बिखर गईं। वह चुप हो गया और सिर झुका लिया।

कहानी का मोड़

उस रात अजय ने खुद को कमरे में बंद कर लिया। आँखों से आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। दिल से एक ही आवाज़ निकल रही थी — “प्यार जो जान ले गया”

अजय की हालत

रीमा का इनकार अजय के दिल पर गहरी चोट कर गया। उसने कोशिश की कि पढ़ाई पर ध्यान दे, लेकिन अब किताबें बोझ लगने लगीं। क्लास में वह चुपचाप पीछे बैठ जाता। दोस्त उससे बातें करने की कोशिश करते, लेकिन वह हर किसी से दूरी बना लेता।

अकेलापन और दर्द

हर जगह रीमा की यादें उसे सतातीं। जब भी वह किसी और लड़के के साथ बात करती, अजय का दिल जल उठता। वह बाहर से शांत दिखता, लेकिन अंदर टूट चुका था।

धीरे-धीरे उसने अपने दर्द को छुपाने के लिए शराब का सहारा लेना शुरू कर दिया। पहली बार उसे लगा कि नशे से कुछ देर के लिए तकलीफ़ हल्की हो जाती है।

नशे की गिरफ्त

लेकिन यह शुरुआत थी एक अंधेरे सफर की। शराब अब उसकी आदत बनने लगी। वह देर रात तक अकेले बैठकर पीता और अगले दिन क्लास में बिखरा हुआ पहुँचता।

पढ़ाई पर असर दिखने लगा। जहाँ पहले वह क्लास में टॉपर था, वहीं अब उसके नंबर गिरने लगे। शिक्षक भी समझ नहीं पा रहे थे कि यह वही अजय है या कोई और।

कहानी की सच्चाई

अजय को एहसास था कि वह गलत रास्ते पर जा रहा है, लेकिन दिल के दर्द ने उसे मजबूर कर दिया था। वह जानता था कि यह प्यार उसकी ज़िंदगी बदल चुका है। और यही कहानी धीरे-धीरे बदल रही थी उस दर्दनाक किस्से में, जिसे हर कोई हमेशा याद करेगा — “प्यार जो जान ले गया”

घर का बदलता माहौल

अजय के घरवाले उसके बदलाव को महसूस करने लगे। पहले जो बेटा पढ़ाई में सबसे आगे था, वही अब चुपचाप कमरे में बंद रहता। माँ जब पूछती — “बेटा, सब ठीक तो है?” तो वह बस मुस्कुराकर टाल देता।

पिता की नाराज़गी

अजय के पिता उसकी गिरती पढ़ाई देखकर चिंतित थे। कई बार उन्होंने समझाया —
“अजय, यह उम्र मेहनत करने की है। यूँ वक़्त बरबाद मत करो।”
लेकिन अजय के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। उसके अंदर का खालीपन किसी सलाह से नहीं भर पा रहा था।

नशे का असर

धीरे-धीरे उसकी शराब पीने की आदत घरवालों तक पहुँच गई। दोस्तों ने भी बताया कि वह कॉलेज में भी कभी-कभी नशे में आता है। माँ की आँखों से आँसू रुकते नहीं थे। लेकिन अजय के लिए यह सब जैसे मायने ही नहीं रखता था।

कहानी का अंधेरा

अजय की ज़िंदगी में अब बस रीमा का नाम था और उसका इनकार। उसके सपने, उसका करियर और उसकी हँसी सब खोते जा रहे थे। यह वही मोड़ था जहाँ से उसकी कहानी और गहरी हो गई। और यही गहराई एक दिन साबित करने वाली थी कि यह सचमुच था — “प्यार जो जान ले गया”

बदलती नज़रिया

रीमा को महसूस होने लगा था कि अजय अब वैसा नहीं रहा। कॉलेज के पहले साल में जिस लड़के की हँसी सबसे तेज़ गूंजती थी, अब वही लड़का एक कोने में बैठा, किताब खोले बिना पन्ने पलटता रहता।
रीमा ने कई बार चाहा कि उससे पूछे — “अजय, सब ठीक है ना?” लेकिन उसके मन के किसी कोने में डर था कि कहीं अजय फिर से अपने दिल की बात न कह दे।

दूरी की शुरुआत

इस डर के चलते उसने खुद ही दूरी बना ली। अब वह क्लास में उससे नज़रें मिलाने से बचती। जहाँ पहले वह अजय के बगल वाली सीट पर बैठती थी, अब वह दोस्तों के बीच जाकर बैठती।
अजय को यह बदलाव भीतर तक चुभता। वह चुपचाप उसे देखता और सोचता — “क्या सच में मेरी मौजूदगी उसके लिए बोझ बन गई है?”

अजय का टूटना

दिन बीतते गए और अजय की हालत बिगड़ती गई। पहले वह सिर्फ क्लास में चुप रहता था, अब तो कैन्टीन तक जाना छोड़ दिया। दोस्तों के बीच रहना भी उसे भारी लगने लगा।
वह कमरे में अकेला बैठकर, दीवारों से बातें करता। शराब और सिगरेट उसकी आदत बन चुकी थी। किताबें उसके टेबल पर वैसे ही पड़ी रहतीं, लेकिन उनका इस्तेमाल अब सिर्फ खालीपन ढकने के लिए था।

रीमा का द्वंद्व

रीमा ने भी अजय को ऐसे बिखरते हुए देखा। कई बार उसका मन हुआ कि वह जाकर पूछे — “अजय, क्यों खुद को यूँ तकलीफ़ दे रहे हो?” लेकिन उसके दोस्तों की बातें उसे रोक देतीं।
दोस्त कहते — “रीमा, तू जितनी दूरी रखेगी, उतना अच्छा होगा। वरना अजय फिर वही सब शुरू कर देगा।”
रीमा चुप रह जाती। लेकिन रात को जब अकेली होती, तो सोचती — “क्या मेरी दूरी ने उसे इतना तोड़ दिया?”

अजय की आत्मा पर चोट

अजय के लिए अब हर दिन जीना मुश्किल हो गया था। रीमा को दोस्तों संग हँसते-बोलते देखना उसकी आत्मा को चोट पहुँचाता। वह अक्सर अपने डायरी में लिखता —
“काश, मैं उसे बता पाता कि मेरी दुनिया सिर्फ उसी से है।”

कहानी धीरे-धीरे उस अंधेरे रास्ते पर बढ़ रही थी जहाँ से लौटना मुश्किल था। यह सच में बनती जा रही थी एक दर्दनाक दास्तान, जिसे लोग बरसों तक याद करेंगे — “प्यार जो जान ले गया”

दोस्तों की चिंता

अजय का बदलता चेहरा उसके दोस्तों से छुपा नहीं था। क्लास के बाद जब सब कैन्टीन जाते, तो अजय अकेले कमरे में लौट जाता। कभी किसी का फोन उठाता नहीं, और उठाता भी तो बस दो शब्दों में जवाब देकर फोन काट देता।
उसका सबसे करीबी दोस्त विजय, जो गाँव से उसके साथ पढ़ने आया था, बहुत परेशान रहता। उसने कई बार उसे समझाने की कोशिश की —
“अजय, ये सब छोड़। तू क्यों खुद को यूँ बर्बाद कर रहा है? ज़िन्दगी सिर्फ एक लड़की के इर्द-गिर्द नहीं घूमती।”

अजय का जवाब

अजय हँसकर कहता —
“विजय, तू नहीं समझेगा। मेरे लिए वो लड़की सब कुछ है। अगर वही नहीं रही, तो यह सब पढ़ाई, यह सब सपने किस काम के?”
विजय गुस्से में कहता —
“तेरे माँ-बाप ने तुझे शहर भेजा है ताकि तू कुछ बने। और तू यहाँ शराब पीकर खुद को मिटा रहा है?”
लेकिन अजय के कानों में ये बातें जैसे घुलती ही नहीं थीं।

कॉलेज का असर

धीरे-धीरे उसकी यह हालत कॉलेज में चर्चा का विषय बनने लगी। प्रोफेसर तक उसकी गिरती पढ़ाई से चिंतित हो गए। क्लास में जब उसका नाम लिया जाता, तो वह जवाब देने की बजाय सिर झुका लेता।
रीमा यह सब दूर से देख रही थी। वह चाहकर भी उसके पास नहीं जा पाती थी। क्योंकि उसे लगता कि अगर उसने बात की, तो अजय फिर से उसी उम्मीद में जीने लगेगा।

अजय का इनकार

दोस्तों ने एक दिन मिलकर तय किया कि उसे किसी काउंसलर या डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। लेकिन जब विजय ने उसे यह बात बताई, तो अजय भड़क उठा।
“मुझे पागल समझता है तू? मुझे किसी डॉक्टर की नहीं, सिर्फ रीमा की ज़रूरत है।”
उसकी आँखों में आँसू थे। विजय उसे चुपचाप देखता रहा।
अजय के इनकार ने साबित कर दिया कि वह अब किसी की भी सुनने वाला नहीं था।

अंधेरा गहराता गया

दोस्तों ने हार मान ली। वे सिर्फ दूर से उसका ख्याल रखते रहे। लेकिन अजय ने खुद को धीरे-धीरे और अंधेरे में धकेल दिया।
अब यह सिर्फ एक अधूरी मोहब्बत की कहानी नहीं रह गई थी, यह बन रही थी वह हकीकत जिसे लोग एक नाम से जानते — “प्यार जो जान ले गया”

रीमा की मजबूरी

रीमा अमीर घर की लड़की थी। उसके माता-पिता ने उसके लिए बहुत से सपने देखे थे। पापा चाहते थे कि वह MBA करे और परिवार के बिज़नेस को संभाले।
माँ हमेशा कहती थीं — “रीमा, तुम्हारा भविष्य सुनहरा है। अपने रास्ते पर ध्यान दो।”
रीमा दिल से अजय को समझाना चाहती थी। पर उसे डर था कि अगर उसने ज्यादा नज़दीकी दिखाई, तो अजय फिर उसी उम्मीद में जी उठेगा। और यह बात उसके परिवार को कभी मंज़ूर नहीं होती।

अजय की उम्मीद

दूसरी तरफ, अजय का दिल अब भी रीमा पर टिका था। उसे लगता था कि चाहे कुछ भी हो, रीमा एक दिन उसके प्यार को समझेगी।
वह हर रात अपनी डायरी में लिखता —
“रीमा, तू चाहे लाख दूरी बना ले, मैं तेरा इंतजार ज़रूर करूँगा।”
उसकी आँखों में अजीब-सी चमक होती। उसे लगता, शायद कल सब बदल जाएगा।

टकराव की घड़ी

एक दिन विजय ने गुस्से में अजय से कहा —
“कब तक ऐसे जीएगा? कब तक अपनी ज़िन्दगी को एक ख्वाब के लिए बर्बाद करेगा? वो तुझे चाहती ही नहीं!”
अजय चुप रहा। लेकिन भीतर से उसका दिल टूट रहा था।
उसने सिर्फ इतना कहा —
“प्यार तो वही होता है जिसमें चाहने वाला सब कुछ दे दे, चाहे बदले में कुछ मिले या न मिले।”

रीमा का द्वंद्व

रीमा भी इस सब से परेशान थी। क्लास में जब वह अजय को देखती, तो उसकी हालत पर तरस खाती। लेकिन उसके पास कोई रास्ता नहीं था।
कई बार उसने सोचा कि उसके पास जाकर सब साफ़-साफ़ कह दे — “अजय, मुझे भूल जाओ।”
पर जब भी वह उसके आँसू भरे चेहरे को याद करती, उसका दिल पिघल जाता।

आख़िरी उम्मीद

अजय ने तय कर लिया था कि वह रीमा से आखिरी बार अपने दिल की बात कहेगा। उसे लगता था कि अगर रीमा एक बार भी “हाँ” कह दे, तो उसकी दुनिया फिर से बस जाएगी।
उसकी पूरी कहानी अब एक मोड़ की ओर बढ़ रही थी। यह सिर्फ एक मोहब्बत की तलाश नहीं थी, यह बन चुका था वो दर्दनाक किस्सा — “प्यार जो जान ले गया”

इकरार की घड़ी

एक शाम अजय ने हिम्मत जुटाई। उसने तय किया कि अब वह रीमा से सब कुछ साफ़-साफ़ कहेगा।
कॉलेज की लाइब्रेरी में वह अकेले उसका इंतज़ार करने लगा। दिल की धड़कन तेज़ थी, हाथ काँप रहे थे।
जब रीमा आई, तो उसने धीरे से कहा —
“रीमा, मुझे तुमसे कुछ कहना है। यह आख़िरी बार होगा।”

टूटते शब्द

अजय की आँखों में आँसू थे। उसने कहा —
“मैंने हमेशा तुम्हें दोस्त से बढ़कर चाहा है। हर दिन, हर पल तुम्हारे खयालों में जिया हूँ। मेरे लिए दुनिया सिर्फ तुम हो। मुझे मत ठुकराओ।”
रीमा चुप रही। उसके होंठ काँप रहे थे। लेकिन वह जानती थी कि सच बोलना ज़रूरी है।

रीमा का अंतिम इंकार

रीमा ने गहरी साँस ली और कहा —
“अजय, हम सिर्फ दोस्त हैं। मैं तुम्हारे जज़्बात की कद्र करती हूँ, लेकिन मैं तुम्हें उस नज़र से कभी नहीं देख सकती। मेरी दुनिया अलग है और तुम्हारी अलग।”
यह सुनकर अजय का दिल चकनाचूर हो गया। उसे लगा जैसे ज़मीन उसके पैरों तले खिसक गई हो।

अजय की चुप्पी

उसने कुछ नहीं कहा। बस मुस्कुराने की कोशिश की।
“ठीक है रीमा। शायद मेरा प्यार एकतरफा ही सही। लेकिन यह हमेशा रहेगा।”
कहकर वह वहाँ से निकल गया।
उसकी चाल लड़खड़ा रही थी। दोस्तों ने देखा तो समझ गए कि उसका सब्र अब टूट चुका है।

दर्द की शुरुआत

यह इंकार अजय के लिए किसी मौत से कम नहीं था। अब उसकी मोहब्बत सिर्फ नाम रह गई थी।
उसकी डायरी में उस रात एक ही लाइन लिखी मिली —
“यह सच है, यह वही किस्सा है जिसे लोग हमेशा याद करेंगे — प्यार जो जान ले गया।”

अजय का बिखरना

रीमा का अंतिम इंकार सुनने के बाद अजय बिल्कुल टूट गया।
पहले वह उम्मीद में जी रहा था, लेकिन अब उसके पास जीने की कोई वजह नहीं बची।
क्लास में वह पीछे की बेंच पर चुपचाप बैठता। किताबें उसके लिए अब बोझ बन गई थीं।

नशे की गिरफ्त

उसने अपने ग़म को भुलाने के लिए शराब का सहारा लिया।
धीरे-धीरे वह नशे में डूबता गया।
दोस्तों ने उसे समझाने की कोशिश की, पर उसने किसी की बात नहीं मानी।
हर पैग के साथ वह और डूबता चला गया।

मौत से पहला सामना

एक रात, अजय अपने कमरे की छत पर गया।
हवा बहुत ठंडी थी और अंधेरा गहरा।
उसने रेलिंग पकड़ी और नीचे देखा।
दिल में बस एक ख्याल आया — “अगर मैं कूद जाऊँ तो शायद दर्द खत्म हो जाएगा।”
आँखों से आँसू बह रहे थे। लेकिन अगले ही पल विजय आ गया और उसे पकड़कर नीचे खींच लिया।

दोस्त की पुकार

विजय ने रोते हुए कहा —
“पागल है क्या? तेरे बिना हम क्या करेंगे? तू सिर्फ अपने बारे में क्यों सोच रहा है?”
अजय ने धीरे से जवाब दिया —
“मैं थक गया हूँ विजय। यह मोहब्बत मुझे हर पल मार रही है। यह सच है, यही है प्यार जो जान ले गया।”

उम्मीद की हल्की किरण

विजय ने उसे गले लगाया और कहा —
“देख, तू अकेला नहीं है। जब तक मैं हूँ, तुझे टूटने नहीं दूँगा। जिंदगी खत्म करना हल नहीं है।”
अजय चुप रहा, लेकिन उसके मन में मौत का साया अब गहराता जा रहा था।

डायरी का सच

अजय अब और किसी से खुलकर बात नहीं करता था।
उसका सबसे बड़ा सहारा उसकी पुरानी डायरी बन गई।
वह रोज़ उसमें अपने दिल की बातें लिखता।
हर पन्ने पर बस एक ही नाम था — रीमा
उसके शब्दों में दर्द साफ झलकता था।

टूटे जज़्बात

डायरी में लिखा था —
“रीमा, तुम मेरी साँस हो। मैं जी भी लूँ तो किस लिए? जब तुम मेरी नहीं हो सकती, तो यह जीवन बोझ है।”
ऐसी बातें पढ़कर कोई भी समझ जाता कि अजय अब गहराई तक टूट चुका है।

रीमा की बेचैनी

धीरे-धीरे रीमा को भी अजय की चुप्पी महसूस होने लगी।
पहले वह हमेशा उसके आसपास रहता था, अब उससे नज़रें चुराता था।
वह सोचती — “क्या मैंने उससे ज़्यादा कठोर व्यवहार कर दिया? क्या उसकी दूरी मेरी वजह से है?”
रीमा की रातें भी बेचैन होने लगीं।

दोस्त का इशारा

एक दिन विजय ने रीमा से कहा —
“तुम समझती क्यों नहीं? अजय अंदर से बिखर चुका है। वह अब मौत के करीब है। अगर तुम उसे संभाल नहीं सकती, तो कम से कम दूर भी मत हो।”
रीमा चुप रही। दिल में हलचल थी, लेकिन ज़ुबान से कुछ कह न सकी।

बढ़ता अंधेरा

अजय का दर्द अब उसके चेहरे पर साफ दिखाई देता था।
रीमा समझ गई कि यह कहानी सिर्फ मोहब्बत की नहीं रही।
यह सच में वही किस्सा बन रहा था जिसे लोग हमेशा याद करेंगे — प्यार जो जान ले गया

अचानक हुई मुलाक़ात

एक शाम कॉलेज के गेट पर रीमा ने अजय को अकेला बैठे देखा।
उसके हाथ में डायरी थी और चेहरा बुझा हुआ।
रीमा पास आई और बोली —
“अजय, क्या हम थोड़ी देर बात कर सकते हैं?”
अजय ने पहली बार उसकी आँखों में सीधे देखा।

रीमा की स्वीकारोक्ति

रीमा ने धीमी आवाज़ में कहा —
“मुझे पता है मैंने तुम्हें बहुत चोट पहुँचाई।
लेकिन मैं झूठ नहीं बोल सकती थी।
अब जब तुम मुझसे दूर हो गए हो, तो लगता है कुछ अधूरा रह गया है।”
अजय का दिल धड़क उठा।
उसे लगा शायद यही वह पल है जिसका वह इंतज़ार कर रहा था।

अजय की उम्मीद

अजय ने कांपती आवाज़ में कहा —
“रीमा, मैं सिर्फ इतना चाहता हूँ कि तुम मेरी दुनिया में रहो।
चाहे दोस्त बनकर, चाहे प्यार बनकर।
लेकिन मुझे छोड़कर मत जाओ।”
उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।

रीमा का डर

रीमा ने उसका हाथ थामा और बोली —
“अजय, मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती।
लेकिन मेरे घरवालों की दुनिया अलग है।
तुम समझते हो ना?
मैं चाहकर भी सबके खिलाफ नहीं जा सकती।”
रीमा की आवाज़ काँप रही थी।

टूटी हुई रोशनी

अजय ने गहरी साँस ली और बोला —
“तो इसका मतलब यह मोहब्बत हमेशा अधूरी ही रहेगी।
यह सच है, यही है प्यार जो जान ले गया।”
रीमा चुप रही।
उसकी आँखें भीग गईं, लेकिन उसके होंठ बंद रहे।

अजय का हौसला

रीमा की आधी-अधूरी बातों ने अजय को फिर से हिम्मत दी।
उसने तय किया कि वह आखिरी बार अपनी मोहब्बत के लिए कोशिश करेगा।
वह जानता था कि हार भी मिली, तो यह उसकी आत्मा को चैन देगी।

परिवार से सामना

एक दिन अजय ने साहस जुटाकर रीमा के घरवालों से मिलने का सोचा।
वह जानता था कि यह कदम आसान नहीं होगा।
लेकिन दिल ने कहा — “अगर सच में यह प्यार है, तो कोशिश ज़रूरी है।”
उसने विजय को सब बताया और मदद माँगी।

रीमा की दुविधा

रीमा को जब पता चला कि अजय उसके घर आने वाला है, तो वह घबरा गई।
वह सोच रही थी — “अगर पापा को गुस्सा आ गया तो? अजय की बेइज़्ज़ती हो जाएगी।”
उसका मन भी उसे रोकने का कह रहा था, लेकिन अजय का जुनून उसे रोक न सका।

टकराव की शुरुआत

अजय जब रीमा के घर पहुँचा तो उसका स्वागत खामोशी से हुआ।
रीमा के पिता ने सख्त आवाज़ में पूछा —
“कौन हो तुम? और हमारी बेटी से क्या चाहते हो?”
अजय ने निडर होकर जवाब दिया —
“मैं उससे प्यार करता हूँ।
यह मोहब्बत मेरी जान है।
यही है प्यार जो जान ले गया।”

रिश्ते की जंग

रीमा स्तब्ध खड़ी थी।
पिता का चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
उन्होंने कहा —
“यह सब खत्म करो। हमारी बेटी तुम्हारे लिए नहीं बनी।”
रीमा की आँखें नम थीं, पर वह कुछ बोल न सकी।
अजय के दिल में उम्मीद और डर दोनों एक साथ थे।

अजय का अकेलापन

रीमा के घर से लौटने के बाद अजय बिल्कुल बदल गया।
कभी हँसने वाला लड़का अब खामोशियों में डूब गया।
कक्षा में भी वह कोने में बैठा रहता।
दोस्तों से बातें करना लगभग छोड़ दिया।
उसकी आँखों में हर वक्त वही सवाल तैरता —
“क्या मेरी मोहब्बत सिर्फ एक सपना थी?”

नशे का सहारा

समय बीतने के साथ अजय और भी टूटता चला गया।
उसने अपने दर्द को छिपाने के लिए नशे का सहारा लेना शुरू कर दिया।
रात-रात भर शराब की बोतलें खाली करता और सड़क पर भटकता।
कभी कॉलेज की छत पर बैठकर आसमान से बातें करता।
उसकी जिंदगी अब एक धुंध में डूब चुकी थी।

रीमा का अपराधबोध

रीमा भी अजय की हालत देखकर अंदर से टूटने लगी थी।
वह चाहती थी कि अजय को समझाए, लेकिन परिवार की दहशत ने उसे रोक रखा था।
कभी-कभी वह रोते हुए कहती —
“काश मैंने उस दिन उसके लिए कुछ कहा होता।”
पर उसकी मजबूरी उसके प्यार से बड़ी साबित हो गई।

आखिरी ख़त

एक रात अजय ने अपने कमरे में बैठकर एक खत लिखा।
उसने लिखा —
“रीमा,
तुम्हारी खामोशी ने मुझे तोड़ दिया।
पर यकीन मानो, मेरी रूह हमेशा तुमसे मोहब्बत करेगी।
मेरे लिए यह सच में वही प्यार जो जान ले गया है।
अगर अगले जन्म में हम मिले, तो शायद मुकम्मल हो पाए।”

मोहब्बत का अंजाम

उस रात अजय ने खुद को हमेशा के लिए खामोशी में दफना लिया।
सुबह उसके कमरे से सिर्फ खामोशी निकली और मेज पर रखा हुआ वह आख़िरी खत।
रीमा जब यह खबर सुनी तो सदमे में रह गई।
उसकी आँखों से आंसू बहते रहे और वह खुद से बार-बार कहती रही —
“अगर मैंने उस दिन उसका साथ दिया होता, तो शायद यह अंजाम न होता।”

अधूरी कहानी

अजय की मोहब्बत उसकी जान ले गई।
रीमा की मोहब्बत उसके दिल में दबी रह गई।
गाँव और शहर दोनों जगहों पर यह कहानी लोगों की जुबान पर थी।
हर कोई कहता —
“यह सिर्फ एक कहानी नहीं, यह है प्यार जो जान ले गया।”

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