वो आख़िरी कॉफ़ी

दिल्ली की ठंडी शाम थी। कनॉट प्लेस के एक छोटे से कैफ़े में लोग अपने-अपने कप में चाय और कॉफ़ी की गर्माहट घोल रहे थे। अयान ने खिड़की के पास वाली टेबल पर बैठते हुए एक गहरी सांस ली। उसके सामने वाली कुर्सी…खाली थी।
उसने मोबाइल निकाला, और उंगलियां अपने आप उस नंबर पर रुक गईं, जिसे वह पिछले 6 महीने से डायल नहीं कर पाया था।
“अनाया…” नाम देखते ही दिल में वही पुरानी चुभन उठी।
दो साल पहले, यहीं, इसी कैफ़े में उनकी पहली मुलाक़ात हुई थी। कॉलेज के फेस्ट के बाद, दोस्तों ने उन्हें एक-दूसरे से मिलवाया था। अनाया हंसते-हंसते बोली थी,
“कॉफ़ी पीते-पीते अगर तुम बोर हुए, तो बाहर निकल सकते हो…”
और अयान ने मुस्कुराते हुए कहा था,
“कॉफ़ी छोड़ दूं, लेकिन तुम्हें… ये सोच भी नहीं सकता।”
दोनों की दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदल गई। सुबह की गुड मॉर्निंग से लेकर रात की गुड नाइट तक, हर चैट में एक नया सपना बुना जाता। लेकिन सपनों के बीच हकीकत के कांटे भी उगने लगे। अयान नौकरी में बिज़ी रहने लगा, और अनाया को उसकी गैरमौजूदगी चुभने लगी।
एक दिन अनाया ने गुस्से में कहा,
“तुम्हारे पास मेरे लिए वक्त ही नहीं है, अयान।”
अयान ने भी झुंझलाकर जवाब दिया,
“और तुम्हें लगता है मैं बस वक्त बर्बाद कर रहा हूं? मैं हमारे भविष्य के लिए मेहनत कर रहा हूं!”
उस दिन बहस इतनी बढ़ी कि… वो आख़िरी बार बात हुई।
अनाया ने उसे ब्लॉक कर दिया।
और अयान ने खुद को काम में डुबो दिया।
आज, छह महीने बाद, अयान उसी कैफ़े में बैठा था।
वेटर ने आकर पूछा,
“सर, आपका ऑर्डर?”
“एक ब्लैक कॉफ़ी… और अगर हो सके तो… पुरानी यादें भी ला दीजिए,” अयान ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
कॉफ़ी आई, और साथ ही… दरवाज़ा खुला।
अयान का दिल धड़कना भूल गया।
वो… अनाया थी। वही हंसी, वही आंखें, बस चेहरे पर हल्की उदासी का साया।
अनाया ने भी उसे देखा, और एक पल के लिए रुक गई।
फिर धीरे-धीरे उसकी टेबल की तरफ बढ़ी।
“हाय…” उसने कहा।
“हाय… बैठोगी?”
अनाया बैठ गई। कुछ देर खामोशी रही, फिर उसने कहा,
“मुझे माफ़ कर दो, अयान… मैं बस तुम्हें खोने से डर गई थी, इसलिए नाराज़ हो गई।”
अयान ने कॉफ़ी का कप उसकी तरफ बढ़ाया,
“मैंने भी तुम्हें समझाने की जगह… बस चुप्पी चुन ली।”
दोनों ने एक साथ कप उठाए, और अनाया मुस्कुराई,
“तो… ये नई शुरुआत?”
अयान ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा,
“हाँ… लेकिन इस बार, आख़िरी कॉफ़ी कभी नहीं होगी।”
मोरल:
रिश्ते वक्त मांगते हैं, लेकिन उससे भी ज़्यादा, एक-दूसरे को समझने का धैर्य। कभी-कभी ‘माफ़ी’ और ‘सुनना’ ही सबसे बड़ा तोहफ़ा होता है।