कभी हार मत मानो : असफलता की चोट

भाग 6 में सपना रिजर्व लिस्ट में आने के बाद गहरी निराशा में डूब जाती है।
उसके सपनों, परिवार की उम्मीदों और समाज की बातें उसे अंदर से तोड़ देती हैं।
लेकिन इसी अंधेरे में वह एक नई रोशनी ढूँढती है और तय करती है कि चाहे कुछ भी हो जाए— कभी हार मत मानो।
टूटे सपनों का बोझ
रिजर्व लिस्ट में नाम देखकर सपना कुछ देर तक ठिठक गई।
उसके आसपास के लोग कह रहे थे—
“अरे, रिजर्व लिस्ट भी बड़ी बात है।”
“कम से कम अगली बार का मौका तो पक्का है।”
लेकिन सपना जानती थी कि IAS बनने का सपना अभी भी अधूरा है।
उसका मन बार-बार कह रहा था—
“इतनी मेहनत के बाद भी क्यों नहीं हो पाया?”
दिल्ली के छोटे से कमरे में बैठकर उसने रात भर रोया।
दीवार पर टंगी माँ की तस्वीर को देखते हुए बोली—
“माँ, मैंने कोशिश तो की थी… लेकिन शायद मैं इतनी मजबूत नहीं हूँ।”
लेकिन उसी क्षण उसे अपनी डायरी का वाक्य याद आया—
“कभी हार मत मानो।”
समाज का ताना और परिवार की चिंता
गाँव में जब रिजल्ट की खबर पहुँची, तो लोग तरह-तरह की बातें करने लगे।
कोई बोला—
“इतने साल पढ़ाई करके भी IAS नहीं बनी।”
कोई कहता—
“अब लड़की की शादी कर दो, कब तक ऐसे पढ़ेगी?”
ये बातें सपना के माता-पिता तक पहुँचीं।
माँ ने फोन पर रोते हुए कहा—
“बेटी, लोग क्या-क्या कह रहे हैं। तेरा मन दुखी न हो, तू फिर कोशिश करना।”
सपना को महसूस हुआ कि सिर्फ वह ही नहीं, बल्कि पूरा परिवार इस सफर में उसके साथ हार-जीत झेल रहा है।
उसने मन ही मन दोहराया—
“नहीं, अब रुकना नहीं है। कभी हार मत मानो।”
अंदर की लड़ाई
लेकिन सच यह था कि सपना मानसिक रूप से टूट चुकी थी।
कई दिन तक उसने किताबों को हाथ तक नहीं लगाया।
वह कमरे में चुपचाप बैठी रहती, खिड़की से बाहर देखती और सोचती—
“क्या मुझे छोड़ देना चाहिए? क्या जिंदगी मुझसे ये सब चाहती भी है?”
उसके दोस्तों ने भी उसे समझाने की कोशिश की।
रश्मि बोली—
“सपना, तू इतनी दूर आई है। अब पीछे मत हट।”
लेकिन सपना जवाब देती—
“थक गई हूँ। समझ नहीं आता किस्मत मेरे साथ क्यों नहीं है।”
फिर भी, उसके दिल के किसी कोने से आवाज़ आती—
“कभी हार मत मानो।”
नया रास्ता
एक दिन सपना एक मोटिवेशनल सेशन में गई।
वहाँ एक रिटायर्ड IAS अधिकारी ने कहा—
“बच्चों, UPSC सिर्फ ज्ञान की नहीं, बल्कि धैर्य की भी परीक्षा है।
असफलता ही आपकी असली ताकत बनती है।
याद रखो, कभी हार मत मानो।”
ये शब्द सुनते ही सपना की आँखों से आँसू बह निकले।
उसे लगा जैसे यह बात सीधे उसी के लिए कही गई हो।
वह घर लौटी और अपनी डायरी में बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा—
“चाहे कितनी बार गिरूँ, मैं फिर उठूँगी।
मैं IAS बनूँगी। क्योंकि मैं कभी हार मत मानो।”
अब सपना का मन साफ हो चुका था।
वह जानती थी कि असफलता से डरना नहीं, बल्कि उससे सीखना है।
उसने किताबें फिर से उठाईं, टाइम-टेबल बनाया और खुद को तैयार किया।
सामने का रास्ता अब और लंबा था।
लेकिन उसके दिल में सिर्फ एक ही आवाज़ गूँज रही थी—
“कभी हार मत मानो।”
पार्ट-टाइम काम की शुरुआत
IAS की पहली असफलता के बाद सपना ने ठान लिया था कि वह हार नहीं मानेगी।
लेकिन समस्या यह थी कि उसके पास पैसे कम पड़ रहे थे।
गाँव से अब बार-बार माँ-बाप मदद नहीं कर सकते थे।
पिता की खेती पर कर्ज बढ़ गया था।
दिल्ली में किराया, किताबें और खाने का खर्च बहुत था।
ऐसे में सपना ने फैसला किया कि वह पढ़ाई के साथ पार्ट-टाइम काम करेगी।
एक दोस्त की मदद से उसे एक कोचिंग सेंटर में बच्चों को पढ़ाने का काम मिल गया।
वह शाम को क्लास लेती और दिनभर खुद पढ़ाई करती।
पहली बार जब उसने बच्चों को पढ़ाया तो उसे अजीब लगा।
लेकिन धीरे-धीरे उसमें आत्मविश्वास आया।
बच्चे उसे “दीदी” कहकर बुलाते और वह मुस्कुराकर कहती—
“पढ़ाई ही तुम्हें बदल सकती है, कभी हार मत मानो।”
पढ़ाई और काम का संतुलन
दिनचर्या अब और कठिन हो गई थी।
सुबह 5 बजे उठकर सपना खुद पढ़ाई करती,
फिर लाइब्रेरी जाती,
शाम को बच्चों को पढ़ाती और रात में डायरी लिखती।
कई बार थकान इतनी होती कि वह किताब खोलते ही सो जाती।
लेकिन जब भी नींद आती, वह माँ की आवाज़ याद करती—
“बेटी, कभी हार मत मानो।”
यह वाक्य उसकी नींद तोड़ देता और वह दोबारा किताब उठा लेती।
समाज का दबाव और मानसिक संघर्ष
इधर गाँव में लोग बातें बना रहे थे—
“IAS बनना इतना आसान होता तो हर कोई बन जाता।”
“लड़की पढ़ाई में कब तक समय खराब करेगी?”
ये बातें सपना को तकलीफ़ देतीं।
लेकिन हर बार वह खुद से कहती—
“मुझे उनकी परवाह नहीं, मुझे अपने सपनों की परवाह है।
और सपनों के लिए नियम है— कभी हार मत मानो।”
दिल्ली की हकीकत
दिल्ली की भीड़भाड़ और महंगाई उसके लिए रोज़ की चुनौती थी।
मेट्रो में सफर करते हुए वह अक्सर सोचती—
“क्या मैं सही रास्ते पर हूँ?”
एक दिन रास्ते में उसने एक भिखारी बच्चे को देखा।
वह बच्चा सड़क किनारे पढ़ने की कोशिश कर रहा था।
सपना रुक गई, उसने बच्चे को पेन और कॉपी दी।
बच्चे ने मासूमियत से कहा—
“दीदी, मैं बड़ा होकर ऑफिसर बनूँगा।”
यह सुनकर सपना की आँखें भर आईं।
उसने सोचा—
“अगर यह बच्चा सपने देख सकता है, तो मैं क्यों हार मानूँ?
नहीं… मैं कभी हार मत मानो।”
अब सपना का संघर्ष और बढ़ चुका था।
पढ़ाई और पार्ट-टाइम काम के बीच झूलते हुए भी उसके हौसले बुलंद थे।
वह जान चुकी थी कि कठिनाई कितनी भी बड़ी क्यों न हो,
जब तक इंसान थक कर बैठ न जाए, तब तक हार नहीं होती।
उसने डायरी में लिखा—
“मेरे लिए IAS सिर्फ नौकरी नहीं, बल्कि जिंदगी का मिशन है।
और इस मिशन का मंत्र है— कभी हार मत मानो।”
तीसरी कोशिश की शुरुआत
IAS की दूसरी असफलता के बाद सपना ने हार मानने की बजाय एक नया टाइम-टेबल बनाया।
उसने खुद से वादा किया—
“अबकी बार सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दूँगी।”
लेकिन हकीकत इतनी आसान नहीं थी।
दिल्ली में रहना मतलब खर्चे का बोझ।
पार्ट-टाइम पढ़ाने का काम जारी था।
सुबह से लाइब्रेरी, दोपहर तक खाना बनाना, शाम को बच्चों की क्लास और रात को फिर पढ़ाई।
धीरे-धीरे उसके शरीर ने जवाब देना शुरू कर दिया।
कमज़ोरी, लगातार सिरदर्द और तेज़ बुखार ने उसे जकड़ लिया।
बीमारी का दौर
एक रात अचानक सपना बेहोश हो गई।
रूममेट रश्मि घबरा गई और उसे पास के क्लिनिक ले गई।
डॉक्टर ने कहा—
“आपको एनीमिया और स्ट्रेस दोनों हैं।
अगर ऐसे ही चलता रहा तो शरीर जवाब दे देगा।”
सपना ने डॉक्टर की बात सुनी और आँखें बंद कर लीं।
वह सोचने लगी—
“क्या सच में मेरा सपना मेरी सेहत से बड़ा है?”
लेकिन अगले ही पल उसके मन में गूँज उठा—
“नहीं, जब तक जिंदगी है, संघर्ष है। कभी हार मत मानो।”
मानसिक दबाव
बीमारी से जूझते हुए भी वह पढ़ाई छोड़ना नहीं चाहती थी।
रोज़ सुबह किताब खोलकर पढ़ने बैठती लेकिन नींद और थकान उसे रोक लेती।
कभी-कभी वह सोचती—
“क्या IAS सिर्फ किस्मत वालों के लिए होता है?”
उसका मन टूटने लगा।
गाँव से माँ का फोन आया—
“बेटी, तेरी आवाज़ थकी-थकी लग रही है। तू आराम कर ले।”
सपना ने झूठ बोलते हुए कहा—
“नहीं माँ, मैं ठीक हूँ। बस थोड़ा थक गई थी।”
लेकिन अंदर से वह जानती थी कि अब लड़ाई और कठिन हो चुकी है।
मोटिवेशन की लौ
एक दिन सपना लाइब्रेरी में बैठी थी।
पास की टेबल पर बैठा एक लड़का बार-बार वही किताब पढ़ रहा था।
सपना ने मज़ाक में पूछा—
“इतनी बार क्यों पढ़ रहे हो?”
लड़के ने मुस्कुराकर कहा—
“क्योंकि IAS का रास्ता आसान नहीं।
जब तक दिमाग में बैठ न जाए, तब तक पढ़ो।
असली मंत्र है— कभी हार मत मानो।”
ये शब्द सुनकर सपना को जैसे झटका लगा।
वह खुद को आईने में देखने लगी।
“मैं दूसरों को ‘कभी हार मत मानो’ सिखाती हूँ और खुद डगमगा रही हूँ?”
उस पल उसने तय किया—
अब चाहे बीमारी हो या थकान, वह लड़ेगी।
रात को सपना ने अपनी डायरी में लिखा—
“शरीर थक सकता है, मन टूट सकता है।
लेकिन सपना कभी हार मत मानो।
तीसरी कोशिश ही मेरी असली पहचान होगी।”
उसने दवाई ली, अलार्म लगाया और किताब फिर से खोल ली।
कमज़ोर आँखों में आँसू थे, लेकिन दिल में आग जल चुकी थी।
तीसरी असफलता का दर्द
परीक्षा का दिन आ चुका था।
सपना ने पूरी कोशिश की थी, लेकिन अंदर से जानती थी कि इस बार तैयारी अधूरी है।
परीक्षा हॉल में बैठते ही उसे अजीब सा डर महसूस हुआ।
कलम हाथ में थी, लेकिन दिमाग कई बार खाली हो गया।
किसी तरह उसने पेपर खत्म किया, लेकिन बाहर निकलते ही आँसू छलक पड़े।
“शायद इस बार भी सब बेकार हो गया।”
जब रिज़ल्ट आया, तो सच वही था।
उसका नाम लिस्ट में नहीं था।
गहरी निराशा
उस रात सपना पूरी तरह टूट गई।
उसने कमरे की लाइट बंद कर दी और बिस्तर पर लेट गई।
मन में सवाल था—
“क्या मैं वाकई इस सपने के लायक हूँ?”
रश्मि ने समझाने की कोशिश की—
“सपना, हिम्मत मत हार। तू बहुत करीब है।”
लेकिन सपना गुस्से में बोली—
“नहीं रश्मि, अब और नहीं। तीन बार हार चुकी हूँ।
लोग हँसते हैं, कहते हैं लड़की पागल हो गई है।
माँ-बाप का बोझ बढ़ रहा है।
कितनी बार कहूँ खुद से— कभी हार मत मानो?
अब तो थक गई हूँ।”
परिवार की चिंता
गाँव से माँ का फोन आया।
आवाज़ में उदासी थी—
“बेटी, तू परेशान मत हो। अगर IAS नहीं बनी तो और भी रास्ते हैं। बस तू खुश रह।”
सपना ने धीरे से कहा—
“माँ, मैं ठीक हूँ।”
लेकिन फोन कटते ही वह फूट-फूटकर रो पड़ी।
उसे लगा कि वह अपने माँ-बाप की उम्मीदों पर बोझ बन चुकी है।
हार मानने की कगार
अगले कुछ दिनों तक सपना ने किताबें छूई तक नहीं।
वह बस कमरे में लेटी रहती, खिड़की से बाहर देखती।
दिल्ली की भीड़भाड़ उसे अब काटने लगी थी।
एक दिन उसने डायरी में लिखा—
“शायद जिंदगी ने मुझे बता दिया है कि मैं हार गई हूँ।
अब और नहीं… कभी हार मत मानो कहना भी अब मज़ाक सा लगता है।”
उस पल उसके अंदर का आत्मविश्वास जैसे पूरी तरह मर गया था।
एक छोटी सी रोशनी
लेकिन किस्मत ने उसे पूरी तरह गिरने नहीं दिया।
एक दिन कोचिंग क्लास का एक बच्चा उसे मिलने आया।
उसने कहा—
“दीदी, आपने हमें हमेशा सिखाया कि कभी हार मत मानो।
आज आप ही क्यों हार मान रही हैं?”
सपना उस बच्चे की मासूम आँखों में देखती रही।
दिल पिघल गया।
“क्या सच में मैं इतनी कमजोर हो गई हूँ?”
उस रात सपना ने डायरी दोबारा खोली और लिखा—
“हाँ, मैं हारी हूँ।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं खत्म हो गई हूँ।
जिंदगी का मंत्र सिर्फ एक है— कभी हार मत मानो।
शायद चौथी कोशिश ही मेरी किस्मत बदलेगी।”
धीरे-धीरे उसके अंदर फिर से उम्मीद जगने लगी।
अब उसने तय किया—
“मैं गिरी हूँ, लेकिन उठूँगी ज़रूर।”
नई सोच की शुरुआत
तीसरी असफलता के बाद सपना अंदर से टूट चुकी थी।
हालाँकि उसने खुद से वादा किया था कि फिर से उठेगी, लेकिन दिमाग में गहरी निराशा बैठी हुई थी।
तभी एक दिन उसकी मुलाक़ात अशोक सर से हुई, जो UPSC के जाने-माने मेंटर थे।
रश्मि ने ही उसे वहाँ ले जाया था।
पहली बार मिलने पर सपना चुपचाप बैठी रही।
सर ने मुस्कुराकर कहा—
“बेटा, तुम्हारी आँखों में थकान है, लेकिन हार अभी पूरी नहीं हुई।
क्या तुम सच में IAS बनना चाहती हो?”
सपना ने धीमे स्वर में जवाब दिया—
“हाँ सर, चाहती तो हूँ, लेकिन अब यकीन नहीं बचा।”
गुरु की सीख
अशोक सर ने उसकी डायरी उठाई और कुछ पन्ने पढ़े।
उसमें लिखा था—“कभी हार मत मानो”।
सर हँसकर बोले—
“देखो, ये लाइन सिर्फ लिखने से काम नहीं चलेगा।
इसे जीना पड़ेगा।
असफलता अंत नहीं होती, ये तो बस बताती है कि तुम्हारी तैयारी पूरी नहीं थी।”
उन्होंने सपना से उसके पूरे पढ़ाई के पैटर्न के बारे में पूछा।
कहाँ-कहाँ कमजोर पड़ती है, कौन से विषय भारी लगते हैं।
फिर बोले—
“UPSC सिर्फ पढ़ाई का खेल नहीं है।
ये धैर्य, रणनीति और आत्मविश्वास की परीक्षा है।
अगर तुम सही ढंग से तैयारी करो तो सफलता दूर नहीं।”
रणनीति का बदलाव
अशोक सर ने सपना को नया टाइम-टेबल बनाकर दिया।
उन्होंने कहा—
- हर दिन सिर्फ 8 घंटे पढ़ाई, लेकिन ध्यान से।
- रोज़ 1 घंटे योग और ध्यान।
- हर रविवार मॉक टेस्ट।
- और सबसे ज़रूरी—“अपने अंदर से डर को निकालो।”
सपना ने पहली बार महसूस किया कि असफलता उसकी दुश्मन नहीं, बल्कि उसकी शिक्षक है।
उसने खुद से कहा—
“हाँ, अब मैं सच में सीख रही हूँ। और इस बार मंत्र है— कभी हार मत मानो।”
आत्मविश्वास की वापसी
दिन गुजरने लगे।
सपना ने एक नई ऊर्जा महसूस की।
अब वह खुद पर शक नहीं करती थी।
रात को पढ़ाई करते वक्त उसकी आँखों में चमक होती।
एक दिन रश्मि ने कहा—
“सपना, तुझमें बदलाव साफ दिख रहा है। पहले तू थककर रो पड़ती थी, अब तू पढ़ाई को एन्जॉय कर रही है।”
सपना मुस्कुराई और बोली—
“हाँ रश्मि, क्योंकि अब समझ गई हूँ कि जिंदगी में एक ही मंत्र है— कभी हार मत मानो।”
कुछ महीने बाद सपना ने अपना पहला मॉक टेस्ट दिया और अच्छे अंक पाए।
यह उसके लिए छोटी सी जीत थी, लेकिन आत्मविश्वास के लिए बड़ी।
उसने डायरी में लिखा—
“गुरु सिर्फ पढ़ाई नहीं, जीना भी सिखा देते हैं।
अशोक सर ने मुझे सिखाया कि हार का मतलब रुकना नहीं होता।
अब मैं जानती हूँ—कभी हार मत मानो।”
उसकी आँखों से आँसू गिरे, लेकिन इस बार यह आँसू हार के नहीं, उम्मीद के थे।