दोस्ती का बीज

एक छोटे से गाँव में मीरा और राजू नाम के दो बच्चे रहते थे। दोनों पड़ोसी थे, लेकिन अक्सर आपस में झगड़ते रहते। कभी गुड्डे-गुड़िया को लेकर, कभी गेंद को लेकर, तो कभी आम के पेड़ पर चढ़ने को लेकर। उनकी माएँ भी कहतीं – “अरे, हर रोज़ लड़ाई क्यों करते हो? तुम दोनों दोस्त क्यों नहीं बन जाते?”

लेकिन मीरा और राजू मानते ही नहीं थे।

एक दिन गाँव के बुज़ुर्ग दादाजी ने दोनों बच्चों को बुलाया और उन्हें एक-एक छोटा बीज दिया।
दादाजी बोले – “इसे जमीन में बो दो, रोज़ पानी दो। देखना, इसमें एक राज़ छिपा है।”

मीरा ने बीज को प्यार से मिट्टी में लगाया। हर सुबह पानी देती और उससे बातें करती।
राजू ने भी बीज बो दिया, लेकिन शुरुआत में उसने ध्यान नहीं दिया।

कुछ ही दिनों में मीरा के बीज से छोटी सी हरी-भरी पौध निकल आई। वह खुश होकर दौड़ती-दौड़ती राजू के पास गई –
“देखो, मेरा बीज अंकुरित हो गया!”

राजू को थोड़ा बुरा लगा, उसने उसी दिन से पौधे को पानी देना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसके बीज से भी हरी पत्तियाँ झाँकने लगीं।

दिन बीतते गए, दोनों बच्चे अपने-अपने पौधों की देखभाल करते रहे। लेकिन एक दिन अचानक राजू का पौधा सूखने लगा। वह रोने लगा और मीरा के पास आया।
मीरा बोली – “तुम मेरे पौधे से पानी ले सकते हो। हम दोनों मिलकर इसे फिर से जिंदा करेंगे।”

दोनों ने मिलकर मेहनत की। मीरा ने अपना घड़ा भी साझा किया, राजू ने छाँव बनाई। कुछ ही हफ्तों में राजू का पौधा भी हरा-भरा हो गया।

महीनों बाद दोनों पौधे छोटे पेड़ बन गए। एक दिन दादाजी वहाँ आए और हँसते हुए बोले –
“देखा बच्चों! यही है दोस्ती का बीज। जब तुम साथ मिलकर मेहनत करते हो, तो न केवल पौधे, बल्कि रिश्ते भी खिल उठते हैं।”

उस दिन से मीरा और राजू की लड़ाई बंद हो गई। अब वे हर काम मिलकर करते और गाँव के लोग उन्हें देखकर कहते –
“सच्ची दोस्ती वही है जो पेड़ों की तरह बढ़ती है।”

🌸 मोरल: दोस्ती भी बीज की तरह होती है। प्यार, विश्वास और सहयोग से ही वह बड़ा होकर जीवन को हरा-भरा बनाती है।

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