भूतिया हवेली का रहस्य

“भूतिया हवेली का रहस्य” कहानी पढ़ें, जहाँ एक युवक ने अंधविश्वास तोड़ने की कोशिश की, लेकिन मौत उसका पीछा कर गई।

गाँव और हवेली का डर

गाँव “सोनबरसा” उत्तर प्रदेश के एक छोटे से ज़िले में बसा हुआ था। यह गाँव चारों तरफ़ खेतों और ऊँचे बबूल के पेड़ों से घिरा रहता था। गाँव के लोग मेहनतकश और सीधे-सादे थे, लेकिन एक चीज़ थी जो हमेशा उन्हें डराए रखती थी—गाँव के किनारे खड़ी भूतिया हवेली

उस हवेली का ज़िक्र आते ही बच्चों की आँखें डर से फैल जातीं और बूढ़े तक चुप हो जाते। कहते थे कि हवेली में आधी रात को चीखें सुनाई देती हैं। कोई दरवाज़े के अचानक बंद होने की आवाज़ें सुनता, तो किसी को भीतर लालटेन जलने का भ्रम होता। हालाँकि गाँव का कोई भी इंसान उसकी दीवारों के पार झाँकने की हिम्मत नहीं करता था।


चुनौती और राजीव की हिम्मत

राजीव, बी.ए. का छात्र, गर्मियों की छुट्टियों में गाँव आया हुआ था। शहर में पढ़ाई करते-करते उसमें आधुनिक सोच आ गई थी। जब उसने गाँववालों को हवेली के किस्से सुनाते सुना, तो उसने हँसते हुए कहा—
“अरे ये सब अंधविश्वास है, भूत-प्रेत कुछ नहीं होता।”

उसकी ये बात सुनकर उसके दोस्त मुकेश और सलीम भड़क गए। मुकेश बोला—
“तू शहर पढ़कर आया है तो इसका मतलब ये नहीं कि तू सबको बेवक़ूफ़ समझे। भूतिया हवेली में रात गुज़ारकर दिखा, पता चल जाएगा।”

राजीव ने हँसते हुए चुनौती स्वीकार कर ली। उसने कहा—
“ठीक है, आज रात मैं वहीं रहूँगा। अगर ज़िंदा वापस लौट आया, तो सबको मानना पड़ेगा कि ये हवेली डरावनी नहीं है।”


हवेली के भीतर कदम

शाम ढलते ही गाँववालों में बेचैनी बढ़ने लगी। औरतें खिड़कियों से झाँकतीं और बच्चे डरे-सहमे अपने बिस्तरों में घुस गए। हवेली की तरफ़ जाते हुए राजीव के साथ सिर्फ़ उसका दोस्त सलीम गया, लेकिन गेट तक पहुँचते ही सलीम डरकर भाग खड़ा हुआ।

अब राजीव अकेला खड़ा था उस विशाल भूतिया हवेली के सामने। हवेली की टूटी दीवारों पर जंगली बेलें लिपटी हुई थीं। अंदर से अजीब सी बदबू आ रही थी, मानो सालों से कोई खून या गला सड़ा मांस पड़ा हो।

राजीव ने टॉर्च निकाली और दरवाज़ा धकेल दिया। दरवाज़े की चरमराहट से मानो पूरी हवेली काँप गई। वह हिम्मत करके भीतर चला गया।

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पहला डरावना सामना

अंदर की हालत और भी भयानक थी। दीवारों पर उखड़े हुए प्लास्टर, टूटी खिड़कियाँ, और मकड़ी के जाले। हवा इतनी भारी थी कि सांस लेना मुश्किल लग रहा था। अचानक उसके कानों में एक धीमी सी फुसफुसाहट गूँजी—
“क्यों आए हो यहाँ…?”

राजीव चौंक गया। उसने टॉर्च की रोशनी चारों तरफ़ डाली, लेकिन कोई दिखाई नहीं दिया। वह खुद को समझाता रहा कि ये सिर्फ़ उसका भ्रम है। मगर जैसे ही उसने सीढ़ियों पर कदम रखा, उसके पैरों के नीचे की लकड़ी कराहने लगी।

सीढ़ियों पर चढ़ते समय उसे लगा मानो कोई पीछे-पीछे चल रहा हो। वह मुड़ा, पर पीछे सिर्फ़ अंधेरा था।


आईने का रहस्य

ऊपर के कमरे में पहुँचकर उसने देखा—एक पुराना आईना पड़ा है। आईने की सतह पर धूल जमी थी। जैसे ही उसने हाथ फेरकर साफ़ किया, उसे अपने पीछे एक और परछाई दिखाई दी। वह घबराकर मुड़ा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था।

राजीव का गला सूखने लगा। तभी अचानक खिड़की अपने आप बंद हो गई और कमरा अंधेरे में डूब गया। आईने में अब सिर्फ़ उसका चेहरा नहीं था, बल्कि एक और औरत का चेहरा झलक रहा था—लंबे बिखरे बाल, आँखों में ख़ून, और नुकीले दाँत।

औरत धीरे-धीरे हँसने लगी, उसकी हँसी पूरे कमरे में गूंज उठी।
राजीव डर से कांपने लगा। उसने चीख़ते हुए दरवाज़ा खोला और नीचे भागा।


भागने की कोशिश

नीचे उतरकर उसने देखा कि हवेली का दरवाज़ा बंद हो चुका है। उसने पूरी ताक़त से दरवाज़ा पीटा, लेकिन वह नहीं खुला। तभी अचानक उसके सामने वही औरत खड़ी हो गई।

उसने धीमी आवाज़ में कहा—
“ये हवेली मेरी है… और जो इसमें आया, वो कभी वापस नहीं गया।”

राजीव बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़ा।


अंत का सन्नाटा

अगली सुबह गाँववालों को हवेली के दरवाज़े पर उसका शव मिला। उसकी आँखें फटी हुई थीं, चेहरा डर से नीला पड़ चुका था। डॉक्टर ने कहा कि दिल का दौरा पड़ा है, लेकिन गाँव वाले जानते थे—वह भूतिया हवेली का शिकार हो चुका है।

गाँववालों ने फिर कसम खा ली कि अब कोई उस हवेली के पास नहीं जाएगा। मगर आज भी, आधी रात को उस हवेली से किसी के रोने और हँसने की आवाज़ें आती हैं।

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