शापित हवेली का आखिरी कमरा

उत्तराखंड के पहाड़ों में बसे छोटे से गाँव बिरसिंगपुर के पास, जंगल के बीच एक पुरानी हवेली थी। लोग उसे “शापित हवेली” कहते थे। गाँव के बुजुर्ग कहते, वहाँ कोई इंसान एक रात भी नहीं टिक सकता।

गाँव में 22 वर्षीय रोहित नया आया था। वह दिल्ली से यहाँ आया था, अपने दोस्त अंकित से मिलने, जो गाँव में एक होमस्टे चलाता था। अंकित ने पहली ही रात उसे चेतावनी दी,
“देख भाई, रात को हवेली के पास मत जाना। वहाँ… कुछ है।”

लेकिन रोहित को भूत-प्रेत पर विश्वास नहीं था।


हवेली का रहस्य

गाँव में चर्चा थी कि 50 साल पहले उस हवेली के मालिक राजवंत सिंह की बेटी रजनी की रहस्यमय मौत हो गई थी। कहा जाता था कि वो आखिरी रात, हवेली के “कमरा नंबर 6” में गई थी, और सुबह उसकी लाश वहीं मिली थी — आँखें फटी हुई, चेहरा डर से जाम।

उसके बाद जो भी वहाँ गया, या तो गायब हो गया या पागल होकर लौटा।


जिज्ञासा का जाल

दूसरे दिन शाम को, रोहित चाय पी रहा था कि गाँव का एक बुजुर्ग आया और बोला,
“बेटा, काली हवेली की तरफ मत जाना। वो रजनी अभी भी वहीं है।”
रोहित मुस्कुराकर बोला,
“अरे बाबा, भूत-प्रेत कुछ नहीं होते।”

रात को, ठंडी हवा चल रही थी, और आसमान में बादल गरज रहे थे। अंकित किसी काम से गाँव के दूसरे छोर पर चला गया था। रोहित अकेला था… और तभी खिड़की से हवेली की ओर देखा — बीच में एक खिड़की में हल्की सी पीली रोशनी जल रही थी।

“क्या सच में अंदर कोई है?” रोहित ने सोचा… और टॉर्च लेकर निकल पड़ा।


हवेली के अंदर

दरवाज़ा चर्र की आवाज़ के साथ खुला। अंदर धूल और जाले थे, लेकिन एक अजीब ठंड महसूस हो रही थी। जैसे कोई अदृश्य साँस उसकी गर्दन पर लग रही हो।

वह सीढ़ियों से ऊपर चढ़ा। गलियारे में छह कमरे थे — पाँच के दरवाज़े खुले, लेकिन कमरा नंबर 6 बंद था।
दरवाज़े पर उकेरी हुई पुरानी पेंटिंग में एक लड़की थी… उसका चेहरा धुंधला था, लेकिन आँखें डरावनी चमक रही थीं।

रोहित ने धीरे से दरवाज़ा धकेला — और वह अपने आप खुल गया।


कमरा नंबर 6

अंदर एक टूटा हुआ आईना था, और बीच में पुरानी लकड़ी की कुर्सी। जैसे ही रोहित अंदर गया, दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया।

आईने में उसका चेहरा दिख रहा था, लेकिन धीरे-धीरे उस चेहरे के पीछे एक और चेहरा उभरने लगा — एक लड़की, सफ़ेद साड़ी में, गीले बाल, और होंठों पर हल्की मुस्कान।

“तुम आ गए…” उसने फुसफुसाया।
रोहित का गला सूख गया,
“तुम… कौन हो?”
“मैं रजनी हूँ… मैं इंतज़ार कर रही थी।”


मौत का खेल

अचानक कमरा ठंडा हो गया। रजनी आगे बढ़ी, और उसकी आँखें काली हो गईं।
“तुम भी… मेरे साथ यहीं रहोगे।”
रोहित ने दरवाज़ा खोलने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं खुला। कुर्सी अपने आप हिलने लगी, और आईना धीरे-धीरे लाल रंग में बदलने लगा — जैसे खून से भर गया हो।

रजनी चीखने लगी, और रोहित की साँसें भारी हो गईं। उसे लगा उसका दम घुट रहा है।


आखिरी क्षण

जैसे ही रजनी ने उसका गला पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया, दरवाज़ा जोर से खुला और अंकित अंदर आया।
अंकित ने रोहित को खींचकर बाहर निकाला। जैसे ही वे बाहर निकले, दरवाज़ा फिर अपने आप बंद हो गया, और अंदर से एक भयानक हँसी गूँजने लगी।


सच्चाई

अगले दिन अंकित ने बताया,
“रजनी की मौत हत्या थी। उसे कमरा नंबर 6 में जिंदा दीवार में चुन दिया गया था। शायद उसकी आत्मा अब भी किसी का इंतज़ार कर रही है।”

रोहित अब भी कभी उस हवेली की तरफ नहीं देखता। लेकिन आज भी, तूफ़ानी रातों में, हवेली की खिड़की में पीली रोशनी जलती है… और किसी के फुसफुसाने की आवाज़ आती है —
“अगला… कौन?”

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